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न करने का सकल्प करना द्रव्य-प्रत्याख्यान हे । सक्लेश उत्पन्न कराने वाले स्थान का त्याग करना क्षेत्र- प्रत्याख्यान हे । अयोग्य काल का त्याग करना काल - प्रत्याख्यान हे । अशुभ परिणामो के त्याग का सकल्प करना भाव - प्रत्याख्यान हे 1
प्रत्याख्यान - प्रवाद - जिसमे व्रत, नियम, प्रतिक्रमण, तप, आराधना आदि का तथा साधु के अयोग्य वस्तु के त्याग आदि का वर्णन है वह प्रत्याख्यान - प्रवाद - पूर्व नाम का नोवा पूर्व है ।
प्रत्याख्यान सेवना-यदि साधु आहार करते समय त्याग की गई वस्तु को प्रमादवश ग्रहण करे तो यह प्रत्याख्यान- सेवना नाम का अन्तराय है।
प्रत्याख्यानावरण -- जिस कषाय के उदय म जीव सकल सयम अर्थात् महाव्रती को धारण करने में समर्थ नही होता उसे प्रत्याख्यानावरण कहते है । यह क्रोध, मान, माया ओर लोभ इन चारो रूपो मे होती है।
प्रत्याहार - मन की प्रवृत्ति का सकोच कर लेने पर जो मानसिक सतोप होता है उसे प्रत्याहार कहते हे। यह ध्यान का एक अङ्ग हे 1
प्रत्येक वनस्पति- जीव- जिसमें एक शरीर का स्वामी एक जीव होता वह प्रत्येक वनस्पति कहलाती है। अथवा प्रत्येक अर्थात् एक-एक 'जीव का एक-एक पृथक् शरीर जिसमें होता है वह प्रत्येक वनस्पति
प्रत्येक वनस्पति के दा भट हे सप्रतिष्ठित पत्येक ओर प्रतिष्ठित प्रत्येक । तृण, नल छोटे वृक्ष, वडे वृक्ष आर कन्द - पाच म्पों में पत्येक वनस्पति दिखाई पड़ती है । ये पाची
जनदर्शन पारिभाषिक कोश / 165