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निश्चय-सम्यग्दर्शन-रागादि से भिन्न निज शुद्धात्मा ही उपादेय हे-ऐसी रुचि या श्रद्धान होना निश्चय-सम्यग्दर्शन है। यह निश्चय-चारित्र का अविनाभावी है अर्थात् निश्चय-चारित्र के बिना निश्चय सम्यग्दर्शन नहीं होता। निश्चय-सम्यग्ज्ञान-समस्त रागादि विकल्पो से रहित शुद्धात्मस्वरूप का वेदन या अनुभव करना निश्चय-सम्यग्ज्ञान है या स्वसवेदन ज्ञान को निश्चय-सम्यग्ज्ञान कहते है। निषया-परीषह-जय-श्मशान, उद्यान, गुफा आदि मे रहते हुए जो साधु वीरासन आदि आसन विशेष मे स्थित होकर आत्म ध्यान मे लीन रहते है और उपसर्ग आदि आने पर भी आसन से विचलित नहीं होते, उनके यह निषद्या-परीषह-जय हे। निषिन्द्रिका-बहुत प्रकार के प्रायश्चित आदि का वर्णन करने वाले शास्त्र को निषिद्धिका कहते हैं। निपीधिका-अर्हन्त आदि के निर्वाण क्षेत्र तथा मुनिराज आदि के समाधिस्थल को निषीधिका कहते है। निष्ठीवन-आहार करते समय साधु के मुख मे कफ आदि आ जाने पर निष्ठीवन नाम का अतराय होता है। निसर्ग-क्रिया-पापादान आदि रूप प्रवृत्ति के लिए सम्पति टना निसर्ग-क्रिया है। निसर्गज-सम्यग्दर्शन-जो परोपदेश के विना सहज उत्पन्न होता है उसे निसर्गज-सम्यग्दर्शन कहते है।
जनदर्शन पारिभाषिक को
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