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________________ निश्चय -काल- वर्तना जिसका लक्षण हे वह निश्चय-काल हे । निश्चय काही वस्तु के परिणमन में निमित्त कारण है। इसी के आधार पर समय, निमेष दिन, रात, मास, वर्ष आदि रूप व्यवहार-काल जाना जाता है । निश्चय - चारित्र - रागादि विकल्पो से रहित होकर आत्मस्वरूप मे लीन होना निश्चय चारित्र है । शुक्लध्यान, वीतराग चारित्र, शुद्धोपयोग, उपेक्षासयम, सर्वपरित्याग, उत्सर्ग या निश्चय चारित्र ये एकार्थवाची हैं । निश्चय-नय- जो अभेद रूप से वस्तु का निश्चय करता है वह निश्चय न है । निश्चय नय वस्तु को जानने का एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसमे कर्ता, कर्म आदि भाव एक-दूसरे से भिन्न नहीं होते। यह दो प्रकार का है - शुद्ध निश्चय नय और अशुद्ध निश्चय नय । निरुपाधि गुण और गुणी मे अभेद दर्शाने वाला शुद्ध निश्चय नय है । जैसे केवलज्ञानादि ही जीव है अर्थात् केवलज्ञानादि जीव का स्वभावभूत लक्षण है। इस नय की दृष्टि से जीव निज शुद्ध भावो का कर्ता और वीतराग परम आनद का भोक्ता है । सोपाधिक गुण और गुणी मे अभेद दर्शाने वाला अशुद्ध निश्चय नय है। जेसे - मतिज्ञान आदि हो जीव है। इस नय की दृष्टि से जीव, राग-द्वेष-मोह रूप भावकर्मों का कर्ता है और उस भावकर्म के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले हर्ष विपाद आदि रूप सुख-दुख का भोक्ता है। निश्चय - मोक्षमार्ग - जो निज शुद्ध आत्म-तत्व के सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान ओर आचरण रूप हे वह निश्चय - मोक्षमार्ग है । 142 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश
SR No.010043
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamasagar
PublisherKshamasagar
Publication Year
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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