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नियतिवाद-जो जब, जिसके द्वारा, जिस प्रकार से, जिसका नियम से होना होता है वह तब ही,तिसके द्वारा, तिस प्रकार से होता है-ऐसा मानना नियतिवाद नाम का एकान्त मिथ्यात्व है। नियम-भोग-उपभोग की सामग्री का थोडे समय के लिए त्याग करना नियम कहलाता है। निग्रंथ-1 धन-धान्यादि परिग्रह को ग्रन्थ कहते है अत जो समस्त बाह्य और अंतरग परिग्रह से रहित है वे निग्रंथ साधु कहलाते है। 2 अन्तर्मुहूर्त के उपरान्त जिन्हे केवलज्ञान प्रगट होने वाला है वे निग्रंथ कहलाते है। निर्जरा-जिस प्रकार आम आदि फल पककर वृक्ष से पृथक् हो जाते है, उसी प्रकार आत्मा को भला-बुरा फल देकर कर्मों का झड जाना निर्जरा है। यह दो प्रकार की है-सविपाक निर्जरा और अविपाक निर्जरा। निर्जरानुप्रेक्षा-जीव के पूर्वबद्ध कर्म अपना फल देकर झड जाते हे-ऐसी सविपाक निर्जरा सभी जीवो के निरतर होती रहती है। विशेष तप के द्वारा की गयी अविपाक निर्जरा केवल सम्यग्दृष्टि व्रती श्रावक
और मुनियो के होती है जो जीव को ससार के दुखो से मुक्त करती है। इस प्रकार निर्जरा के गुणदोषो का चिन्तवन करना निर्जरानुप्रेक्षा कहलाती है।
निर्देश-विवक्षित वस्तु के स्वरूप का कथन करना निर्देश कहलाता
निर्माण नामकर्म-जिस कर्म के उदय से शरीर के अङ्ग और उपाङ्गो
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 139