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निद्रा-निद्रा-निद्रा की पुनरावृत्ति होना निद्रा-निद्रा है। निद्रा-निद्रा कम के उदय मे जीव वृक्ष की डाल पर, विषम भूमि पर या जहा कहीं भी अत्यत गहरी नींद में सोता है। निधत्ति-जीव के द्वारा वाधे गए जिस कर्म का उत्कर्षण या अपकर्षण तो सभव है, पर सक्रमण होना सभव नहीं है उसे निधत्ति कर्म कहते है। इतना अवश्य हे कि जिनविय के दर्शन से कर्मों का निधत्तिपना नष्ट हो जाता है। निन्दा-स्वय अपने दोषो को प्रगट करना या उनका पश्चात्ताप करना निन्दा कहलाती है। निवद्ध-मंगल-ग्रन्थ के प्रारभ मे ग्रथकार के द्वारा जो स्तुतिपरक श्लोक आदि के रूप मे भगवान को नमस्कार किया जाता हे वह निवद्ध-मगल कहलाता है। निमित्त-कारण-जो कार्य के होने मे सहयोगी हो या जिसके बिना कार्य न हो उसे निमित्त-कारण कहते है। कुछ निमित्त धर्मद्रव्य आदि के समान उदासीन होते है और कुछ गुरु आदि के समान प्रेरक भी होते है। उचित निमित्त के होने पर तदनुसार ही कार्य होता है। निमित्त-ज्ञान-तीनो काल सबधी शुभाशुभ का ज्ञान करने के लिये अतरिक्ष, भोम, अग, स्वर, व्यजन, लक्षण, छिन्न और स्वप्न ये आठ निमित्त होते है। इन आठ निमित्तो द्वारा शुभाशुभ का ज्ञान होना निमित्त-ज्ञान कहलाता है। निमित्त-दोष-यदि साधु निमित्त-ज्ञान के द्वारा शुभाशुभ फल बताकर आहार प्राप्त करे तो यह निमित्त नामक दोष है। 188 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश