________________
हे-करुणा-दान या दया-दत्ति, पात्र-दत्ति, समदत्ति और सकल-दत्ति। भावो की अपेक्षा दान तीन पकार का हे-राजसिक, तामसिक ओर सात्विक।
दानान्तराय कर्म-जिस कर्म के उदय से जीव दान देने की इच्छा करता हुआ भी दान नहीं दे पाता वह दानान्तराय कर्म है।
दायक दोष-जो मदिरापान आदि व्यसन करता हो, रोगी हो, अतिबाल या अतिवृद्ध हो, अशुद्ध हो, ऐसा अयोग्य दाता यदि साधु को आहार देता है तो यह दायक नाम का दोष है।
दिगम्बर साधु-जो वस्त्र आभूषण आदि समस्त परिग्रह का त्याग करके वालकवत् निर्विकार निर्ग्रथ रूप धारण करते है ओर इन्द्रिय-विजयी होते हे वे दिगम्बर-साधु कहलाते है।
दिग्व्रत-जीवन-पर्यंत दशो दिशाओ की सीमा करके 'मे इससे बाहर नहीं जाऊगा'-ऐसा सकल्प करना दिग्व्रत कहलाता है।
दिव्यध्वनि-केवलज्ञान होते ही अर्हन्त भगवान के मुख से जो सव जीवो का कल्याण करने वाली ओकार रूप वाणी खिरती है उसे दिव्यध्वनि कहते है। यह सर्वभाषाओ से युक्त होती हे ओर मनुष्य, तिर्यंच आदि सभी की भाषा मे सुनाई देती है। तीर्थंकर के समवसरण मे सुबह, दोपहर,शाम और अर्धरात्रि के समय छह-छह घडी तक दिव्य ध्वनि खिरती है। इसके अतिरिक्त गणधर, इन्द्र या चक्रवर्ती आदि के द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर शेष समयो मे भी दिव्यध्वनि खिरती है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 117