________________
दम-इन्द्रियो पर विजय प्राप्त करना दम कहलाता है। दया-दीन-दुखी जीवो के प्रति अनुग्रह या उपकार का भाव होना दया या करुणा है। दर्शन-1 जो मोक्षमार्ग को दिखावे वह दर्शन है। मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन, सयम और उत्तम क्षमादि धर्म रूप है। अत बाह्य मे निग्रंथ और अतरग मे वीतरागी मुनि के रूप को दर्शन कहा है। 2 दर्शन का अर्थ मत है। 3 जिसके द्वारा देखा जाए उसे दर्शन कहते है या वस्तु के आकार-प्रकार को ग्रहण न करके जो मात्र निर्विकल्प रूप से सामान्य अवलोकन होता है उसे दर्शन कहते है। यही दर्शनोपयोग कहलाता हे जो निराकार होता है। इसके चार भेद है-चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन। दर्शन-क्रिया-रागवश रमणीय रूप देखने का अभिप्राय होना दर्शन-क्रिया है। दर्शन-प्रतिमा-निर्मल सम्यग्दर्शन के साथ अष्टमूलगुण का पालन करना और सप्त व्यसन का त्याग करना यह श्रावक की पहली दर्शन-प्रतिमा है। दर्शनमोहनीय कर्म-जिस कर्म के उदय से सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति अश्रद्धान होता है या श्रद्धान की अस्थिरता होती है वह दर्शन मोहनीय कर्म है। यह तीन प्रकार का है-सम्यक्त्व, मिथ्यात्व ओर सम्यग्मिथ्यात्व।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 115