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त्यक्त - शरीर - सल्लेखनापूर्वक जो शरीर छोड़ा जाता है उसे व्यक्त-शरीर कहते हैं ।
त्याग - 1 सचेतन और अचेतन समस्त परिग्रह की निवृत्ति को त्याग कहते है । 2 परस्पर प्रीति के लिए अपनी वस्तु को देना त्याग है । 3 सयमी जनो के योग्य ज्ञान आदि का दान करना त्याग कहलाता है ।
त्रस - जिनके त्रस नामकर्म का उदय है वे त्रस जोव कहलाते है। लोक मे दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पचेन्द्रिय आदि जो जीव दिखाई देते है वे सभी त्रस जीव हे । दो-इन्द्रिय, तीन- इन्द्रिय और चार- इन्द्रिय जीवो को विकलेन्द्रिय कहते हे । पचेन्द्रिय जीव सकलेन्द्रिय कहलाते है ।
त्रसघात - जिन पदार्थो के सेवन मे त्रस जीवो का घात होता है ऐसे मास, शहद आदि पदार्थ बसघात नामक अभक्ष्य कहलाते हैं ।
स- नामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव द्वीन्द्रिय आदि रूप स पर्याय मे जन्म लेता है उसे त्रस - नामकर्म कहते है ।
त्रसनाली - जिस प्रकार वृक्ष के मध्य मे सार भाग होता है उसी प्रकार लोक के मध्य भाग मे एक राजू लम्बी-चौडी और कुछ कम तेरह राजू ऊची त्रसनाली है । त्रस जीव इस त्रसनाली के भीतर ही रहते हे, बाहर नहीं ।
त्रीन्द्रिय-जीव- जिनके स्पर्शन, रसना और घ्राण ये तीन इन्द्रिया होती है वे त्रीन्द्रिय जीव कहलाते हैं। जैसे- चींटी आदि ।
114 / जैनदर्शन पारिभाषिक कोश