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तामसिक - दान - जिसमे पात्र-अपात्र का विवेक न किया गया हो, अतिथि का सत्कार न किया गया हो, जो निन्दनीय हो ओर सेवका से दिलाया गया हो, ऐसे दान को तामसिक - दान कहते है ।
तिर्यंच - पाप कर्म के उदय से जो तिरोभाव को प्राप्त होते हैं वे तिर्यच है । तिरोभाव का अर्थ है नीचे रहना, बोझा ढोना । वनस्पति आदि एकेन्द्रिय, कीट पतंग आदि विकलेन्द्रिय और जलचर, थलचर, नभचर आदि पचेन्द्रिय के भेद से तिर्यच अनेक प्रकार के होते हे । श्रेष्ठ जाति के हाथी, घोडे, सिह आदि तिर्यच जीवो मे अणुव्रत पालन करने की क्षमता रहती है ।
तीर्थंकर - जिसके आश्रय से भव्य जीव ससार से पार उतरते हे वह तीर्थ कहलाता है। तीर्थ का अर्थ धर्म भी है । इसलिए तीर्थ या धर्म का प्रवर्तन करने वाले महापुरुष को तीर्थकर कहते है । आत्मा में तीर्थकर बनने के सस्कार मनुष्य-भव मे किन्हीं केवली भगवान या श्रुत-केवली महाराज के चरणो मे वेठकर दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं के चिन्तवन से प्राप्त होते है। भरत ओर ऐरावत क्षेत्र में चोवीस - चौवीस तीर्थकर होते हे । विदेह क्षेत्र मे सदा वीस तीर्थकर विद्यमान रहते है ।
तीर्थंकर नामकर्म - जिस कर्म के उदय से जीव को तीनो लोक मे पूज्यता प्राप्त होती है उसे तीर्थकर नामकर्म कहते है अथवा जिस कर्म के उदय से जीव पाच कल्याणको को प्राप्त करके तीर्थ या धर्म का प्रवर्तन करता है, उसे तीर्थकर नामकर्म कहते है ।
तीर्थ - जिसके आश्रय से भव्य जीव ससार स पार उतरते हे वह तीर्थ
112 / जेनदर्शन पारिभाषिक कोश