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तप-प्रायश्चित-उपवास आदि तप के द्वारा अपने व्रतो मे लगे दोषो की शुद्धि करना तप नाम का प्रायश्चित है। तप-विनय-तप मे और श्रेष्ठ तपस्वी जनो मे भक्ति और अनुराग रखना तथा जो छोटे तपस्वी है उनकी एव चारित्रवान् मुनियो की अवहेलना नहीं करना तप-विनय है।
तपाचार-उत्साहपूर्वक बारह प्रकार के तप का आचरण करना तपाचार है।
तप्त-तप ऋद्धि-जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु के द्वारा खाया हुआ अन्न आदि मल मूत्र के रूप मे परिणत नही होता वह तप्त-तप ऋद्धि कहलाती है। तर्क-व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते है। जैसे जहा-जहा धूम है वहा-वहा अग्नि है और जहा-जहा अग्नि नही है वहा-वहा धूम भी नहीं है।
तादात्म्य-संबंध-जो निश्चय से समस्त अवस्थाओ मे जिस स्वरूपपने से व्याप्त रहे उसका उसके साथ तादात्म्य-सबध होता है जैसे-अग्नि का उष्णता के साथ तादात्म्य-सबध है। तादात्म्य सबध दो प्रकार का हे-कालिक तादात्म्य और क्षणिक तादात्म्य । द्रव्य का अपने गुणो के साथ त्रैकालिक तादात्म्य होता है, जैसे-जीव का ज्ञान आदि अनन्त गुणो के साथ त्रैकालिक तादात्म्य है। द्रव्य का अपनी पर्यायो के साथ क्षणिक-तादात्म्य रहता है, जैसे-रागद्वेष आदि विकारी भावो के साथ जीव का क्षणिक तादात्म्य-सवध है।
जैनदर्शन पारिभाषिक कोश / 111