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जैन बौद तलवान । [६५ सबन्धी राग व क्रोध और मानको अज्ञान सबन्धी द्वेष कहते है। मिथ्यात्वको मोह कहते है । इस तरह राग, द्वेष, मोहके उत्पन्न करनेवाले कर्मों का सयोग बाधक है। जैन सिद्धात्मे पुद्गल (Matter) के परमाणुओंके समुदायसे बने हुए एक खास जातिके स्कोंको कार्माण वर्गणा Karme molecules कहते है। जब यह ससारी प्राणीसे सयोग पाते हे तब इनको कर्म कहते है। कर्मविपाक ही कर्म फल है। ___ जब तक सम्यग्दर्शनके घातक या निरोधक इन च कर्मों को दबाया या क्षय नहीं किया जाता है तब तक सम्यग्दर्शनका उदय नहीं होता है। इनके असरको मारनेका उपाय तत्व अभ्यास है। तत्व अभ्यासके लिये चार बातोंकी जरूरत है-(१) शास्त्रोको पढकर समझना, (२) शास्त्रज्ञाता गुरुओंसे उपदेश लेना (३) पूज्यनीय परमात्मा अरहत और सिद्धको भक्ति करना । (४) एका तमे बैठकर स्वतत्व परतत्वका मनन करना कि एक निर्वाण स्वरूप मेरा शुद्धात्मा ही खतत्व है, ग्रहण करने योग्य है तथा अन्य सर्व शरीर वचन व मनके सस्कार व कर्म आदि त्यागने योग्य है।
शरीर सहित जीवनमुक्त सर्वज्ञ वीतराग पदधारी आत्माको भरहत परमात्मा कहते है। शरीर रहित -अमूर्तीक सर्वज्ञ वीतराग पदधारी आत्माको सिद्ध परमात्मा कहत है। इसीलिय जैनागममें कहा है
चत्तारि मगल-माहतमगल, सिद्वमगल, साहूमगल, केवलिपण्णत्तो धम्मो मगल ॥ १॥ चत्तारि लोगुत्तमा-भरहत लोगुत्तमा, सिद्धलोगुत्तमा, साडूलोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा ॥२॥