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________________ जन बौद्ध तत्वज्ञान । यानीमें लकीर करनेके समान तुर्त मिट जावे । यह पूर्ण वीतरागताको रोकती है। ९-नोकषाय या निर्मल कषाय जो १६ कषायोके साथ साथ काम करती है-१-हास्य २ शोक, ३ रति, ४ भरति, ५ भय, ६ जुगुप्सा, ७ स्त्रीवेद, ८ पुरुषवेद, ९ नपुसकवेद । उसी तत्वार्थसूत्रम कहा है अध्याय ७ सूत्र १८ में । निःशल्यो व्रती-व्रतधारी साधु या श्रावकको शल्य रहित होना चाहिये । शल्य काटेके समान चुभनेवाले गुप्तभावको कहते है । वे तीन हैं (१) मायाशल्य-कपटके साथ व्रत पालना, शुद्ध भावसे नहीं। (२) मिथ्याशल्प-श्रद्धाके विना पालना, या मिथ्या श्रद्धाके साथ पालना। (३) निदान शल्य-भोगोंकी आगामी प्राप्तिकी तृष्णासे मुक्त हो पालना। जैसे इस बुद्धसूत्रमे श्रद्धावानको शास्ता, धर्म और सघमें श्रद्धाको दृढ़ किया है वैसे जैन सिद्धान्तमें आप्त भागम, गुरुमें श्रद्धाको दृढ़ किया है। आगमसे ही धर्मका बोध लेना चाहिये । श्री समंतभद्राचार्य रत्नकरण्ड श्रावकाचारमें कहते हैं श्रद्धान परमार्थानामाप्तागमतपोभूनाम् ।। त्रिमूढापोढमष्टाङ्ग सम्यग्दर्शनमस्मयम् ॥ ४ ॥ भावार्थ-सम्यग्दर्शन या सच्चा विश्वास यह है कि परमार्थ या सच्चे आत्मा (शास्तादेव), आगम या धर्म, तथा तपस्वी गुरूमें पक्की श्रद्धा होनी चाहिये, जो तीन मूढ़ता व आठ मदसे शून्य हो तथा माठ अग सहित हो।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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