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जैन बौद्ध तत्वज्ञान। [३९ उस समय सुदरिक भारद्वाज ब्राह्मणने कहा क्या आप गौतम वाहुका नदी चलेगे। तब गौतमने कहा वाहुका नदी क्या करेगी। ब्राह्मणने कहा वाहुका नदी पवित्र है, बहुतसे लोग वाहुका नदीमें अपने किये पापोंको वहाते है । तब बुद्धने ब्रह्मणको कहा -
वाहुका, अविस्क, गया और सु दरिकामें । सरस्वती, और प्रयाग तथा बाहुमती नदीमें । कालेकोवाला मूढ चाहे कितना न्हाये, शुद्ध नहीं होगा। क्या करेगी सुन्दरिका, क्या प्रयाग और क्या बाहुबलिका नदी! पापकर्मी कतकिल्विष दुष्ट नरको नहीं शुद्ध कर सकते ।
शुद्धके लिये सदा ही फल्गू है, शुद्ध के लिये सदा ही उपोसन्य (व्रत) है।
शुद्ध और शुचिकर्माके व्रत सदा ही पुरे होते रहते हैं। ब्राह्मण ! यहीं ठहर, सारे प्राणियोंका क्षेमकर । यदि तू झूठ नहीं बोलता यदि प्राण नहीं मारता। यदि विना दिया नहीं लेता, श्रद्धावान मत्सर रहित है। गया जाकर क्या करेगा, क्षुद्र जलाशय भी तरे लिये गया है।
नोट-जैसे इस सूत्रमे वस्त्रका दृष्टात देकर चित्तकी मलीनताका निषेध किया है वैसे ही जैन सिद्धातमें कहा है।
श्री कुदकुंदाचार्य समयसारमे कहते हैवत्थस्स सेदभावो नह णासेदि मलविमेळणाच्छण्णो । मिच्छत्तमलोच्छण्ण तह सम्मत्त खु णादव्व ॥ १६४ ॥ वत्थस्स सेदभावो जह णासेदि मलविमेळणाच्छण्णो। अणमोबाण तहमाण होति मावि !