________________
दूसरा भाग। तपसे शोभायमान हैं, मुक्तिकी भावनामें तत्पर हैं मन, वचन व कायको एकाग्र रखनेमें तत्पर है, सुचारित्रवान है, ध्यानसम्पन्न है व दयावान हैं वे ही पात्र हैं। जिनका शातभाव पानेका हठ है, जो कर्मशत्रुओंसे युद्ध करते है, पाचों इन्द्रियोंके विषयोंसे भलिप्त हैं वे ही यतिवर पात्र है। जिन महापुरुषोंने शरीरसे भी ममत्व त्याग दिया है तथा जो सयमी हैं व सर्व प्राणियोके हितमें तत्पर हैं के ही पात्र है।
इस सूत्रका तात्पर्य यह है कि सम्यग्दृष्टी ही अपने भावोंकी शुद्धि रख सक्ता है। सम्यक्तीको शुद्ध भावोंकी पहचान है, वह मैलपनेको भी जानता है। अतएव वही भावोंका मक हटाकर अपने भावोंको शुद्ध कर सक्ता है।
(५) मज्झिमनिकाय-वस्त्र सूत्र । गौतम बुद्ध भिक्षुओंको उपदेश करते है जैसे कोई मैला कुचैला वस्त्र हो उसे रङ्गरेजके पास ले जाकर जिस किसी रङ्गमें डाले, चाहे नीलमें, चाहे पीतमें, चाहे लालमें, चाहे मजीठके रगमें, वह बद रङ्ग ही रहेगा, अशुद्ध वर्ण ही रहेगा । ऐसे ही चित्तके मलीन होनेसे दुर्गति अनिवार्य है। परन्तु जो उजला साफ वस्त्र हो उसे रङ्गरेजके पास लेजाकर जिस किसी ही रङ्गमे डाले वह सुरग निकलेगा, शुद्ध वर्ण निकलेगा, क्योंकि वस्त्र शुद्ध है। ऐसे ही चित्तके मन् उपक्लिष्ट मर्थात् निर्मल होने पर सुगति अनिवार्य है ।
भिक्षुभो ! चित्र के उपक्लेश या मल हैं (१) अभिदया या