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जैन बौद्ध तत्वान। --- ramainamurwwwmmmmmm हाना बताया है व उनके रोकनेमे संबर होता है ऐसा दिखाया है। इन लहोंके रोकनेपर ही समाधि होती है।
श्री पज्यपादस्वामी समाधिशतक में कहते हैमन्द्रयाण मयम्यस्तिमितेनान्तरात्मना।
यत्क्षण पश्तो म ति तत्तत्व परमात्मन ॥ ३० ॥
भावार्थ-जब सर्व इन्द्रियोंको सयममें लाकर भीतर स्थिर होकर अन्तरात्मा या सम्यग्दृष्टि जिम क्षण जो कुछ भी अनुभव करता है वहा परमात्माका या शुद्धा त्माका स्वरूप है।
__आगे इसी सर्वास्रवसूत्रमें कहा हे-भिक्षुओं! "यहा भिक्षु ठीकसे जानकर सर्दी गर्मा, भूख प्यास, मक्खो मच्छर हवा धूप, सरी, सर्पा दिक माघातको सहनेमें समर्थ होता हे बाणीसे निकले दुवचन तथा शरीर में उत्पन्न ऐसी दुखमय, तीव्र तीक्ष्ण कटुक भवाछित, अरुचिकर प्राणहर पीड़ाओंको स्वागत करनेवाले स्वभावका होता है। जिनक अधिवासना न करनेसे (न सहनेसे) दाह और पीड़ा देनेवाले भास्रव उत्पन्न होते है और अधिवासना करनेसे वे उत्पन्न नहीं होते । यह अधिवासना द्वारा प्रहातव्य आस्रव कहे जाते है।"
यहा पर परीषहोंके जीतनेको सवर भाव कहा गया है । यही बात जैनसिद्धातमें कही है । वहा सवरके लिये श्री उमास्वामी महाराजने तत्वार्थसूत्रमें कहा है
“आस्रपनिरोध सघर ॥ १॥ स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजय चारित्रै "॥२-०९॥
भावार्थ-भासवका रोकना सवर है। वह सवर गुप्ति (मन, वचन, कायको वश रखना), समिति (मलेप्रकार वर्तला, देखाएर