SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । निरोध है, यह दु ख निरोधकी ओर लेजानेवाला मार्ग (प्रतिपद) है उसके तीन सयोजन (बन्धन) छूट जाते है । (१) सकाय दिट्ठी, (२) विचिकिच्छा, (३) सीलव्धत परामोसो अर्थात् सक्काय दृष्टि (निर्वाणरूपके सिवाय किसी अन्यको आपरूप मानना, विचिकित्सा(आपमें मशय) शोलवत परामर्श ( शील और व्रतोंको ही पाकनसे मैं मुक्त होजाऊगा यह अभिमान )।" इसका भाव यही है कि जहानक निर्वाणको नहीं समझा कि वह ही दुखका नाशक है वहातक समारमें दुख ही दुख है । भविद्या और तृष्णा दु ख कारण हे, निर्वाणका प्रेम होते ही ससाकी सर्व तृष्णा मिट जाती है। निवाणका उपाय सम्यग्समाधि है। व- तय हो होगी जब निर्वाणक सिवाय किसी आपको भापरूप न माना जा व निर्वाणमें सशय न हो व बाहगं चारित्र व्रत शीक पवार आदि अहकार छोड़ा जावे। परमार्थ मार्ग सम्यग्समाधि भाव है। इसी स्थल पर इस सूत्रमें लेख है-भिक्षुओ। यह दर्शनस प्रहानव मानव कहे जाते है । यहा दर्शनमे मतलब सम्यग्दर्शनसे है ! सम्यग्नशनस मिथ्यादर्शनरूप आम्रवभाव रुक जाता है, यही बात जैन सिद्धातमें कही है श्री उमास्वामी महाराज तत्वार्थसूत्रमें कहते हैं “मिध्यादर्शनविरतिपमादकषाययोगाव-पहेत" ॥१-८॥ "शकाकाक्षाविचिकित्सान्यदृष्टिपशमा सस्तवा मम्यग्दृष्टेग्ती चारा "॥ २३-७० ।। भावार्थ-कौके भासव तथा बधके कारण भाव पाच है-(१) मिथ्यादर्थन, (२) हिंसा, असत्य, चोरी, कुचीक व परिग्रह पांच भवि.
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy