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लेखककी प्रशस्ति ।
दोहा । भरतक्षेत्र विख्यात है. नगर लखनऊ सार । अग्रवाल शुभ वशमे, मगलसैन उदार ॥१॥ तिन सुत मक्खनलालजी, तिनके मुत दो जान । सतूमल है ज्येष्ठ अब, लघु 'सीतल' यह मान||२|| विद्या पढ गृह कार्यसे, हो उदास दृषहेतु । बत्तिस वय अनुमानसे, भ्रमण करत सुख हेतु ॥३॥ उनिस मो पर बानवे, विक्रम संवत् जान ।। वर्षाकाल विताइया, नगर हिसार सुथान ॥४॥ नन्दकिशोर सु वैश्यका, बाग मनोहर जान । तहा वास सुखसे किया, धर्म निमित्त महान ।।५।। मन्दिर दोय दिगम्बरी, शिखरबन्द शोभाय । नर नारी तह प्रेमसे, करत धर्म हितदाय ॥६॥ कन्याशाला जैनकी बाळकशाला जान । पबलिक हित है जनका, पुस्तक आलय थान ॥७॥ जैनी गृह शत अधिक है, अग्रवाल कुल जान । मिहरचद कूडूमलं, गुलशनराय मुजान ॥८॥ पडित रघुनाथ सहायजी, अरु कश्मीरीलाल ! अतरसेन जीरामजी, सिंह रघुवीर दयाल ॥९॥ महावीर परसाद है, बाकेराय वकील । शभूदयाल प्रसिद्ध है, उग्रसैन मु वकील ॥१०॥