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जैन बौद तत्वज्ञान। सर्व प्रकारके चिन्तवनको छोडता है वही उस स्वानुभवको पहुचता है। जिससे मूल पदार्थ जो आप है सो अपने हीको प्राप्त होजाता है। यही निर्वाणका मार्ग है व इसोकी पूर्णता निर्वाण है ।
बौद्ध ग्रथोंमें निर्वाणका मार्ग आठ प्रकार बताया है । १सम्यग्दर्शन, २- सम्यक् सकल्प ( ज्ञान ), ३-सम्यक् वचन, ४-- सम्यक् कर्म, ५-सम्यक् आजीविका ६-सम्यक व्यायाम, ७-सम्यक् स्मृति, ८-सम्यक समाधि ।
सम्यक् समाधिमें पहुचनेसे स्मरणका विकल्प भी समाधिके सागरमें डूब जाता है । यही मार्ग है जिसके सर्व आस्रव या राग द्वेष मोह क्षय होजाते हैं और यह निर्वाणरूप या मुक्त होजाता है। वह निर्वाण कैसा है, उमके लिये इसी मज्झिमनिकायके अरिय परिएषन सूत्र न० २६ से विदित है कि वह "भजात, अनुत्तर, योगक्खेम, अजर, अव्याधि, अमत, अशोक, असश्लिट्ठ निव्वाण अघि गतो अधिगतोखो मे अयधम्मो दुद्दसो, दुरन बाधा, सतो, पणीतो, मतकावचरो, निपुणो, पडित वेदनीयो । " निर्वाण अजात है पैदा नहीं हुई है अर्थात् स्वाभाविक है, अनुपम है, परम कल्याणरूप है या ध्यान द्वारा क्षेमरूप है, जरा रहित है, न्याधि रहित है, मरण रहित है, अमर है, शोक व क्लेशोंसे रहित है। मैंने उस धर्मको जान लिया जो धर्म गंभीर है, जिसका देखना जानना कठिन है, जो शात है, उत्तम है, तर्कसे बाहर है, निपुण है, पण्डितोंके द्वारा अनुभबगम्य है। पाली कोषमें निर्वाणके नीचे लिखे विशेषण है-- ___मुखो (मुख्य), निरोधो (ससारका निरोध ), निव्वान, दीप, तण्हक्सम (तृष्णाका क्षय), तान (रक्षक), लेन (लीनता) मरूप,