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जैन बौद्ध तत्वज्ञान | ( दूसरा भाग )
(१) बौद्ध मज्झिनिकाय मूलपर्याय सूत्र ।
इस सूत्र गौतम बुद्ध अवक्त आत्मा या निर्वाणका इस तरह दिखलाया है कि जो कुछ अल्पज्ञानीके भीतर विकल या विचार होते है इन सबको दूर करके उस बिंदु पर पहुचाया है जहा उसी समय ध्याताकी पहुच होता है जब वह सर्व सकला विकल्पोंसे रहित समाधिद्वारा किसी अनुभवजन्य अनिर्वचनीय तत्वमें लय हो जाता है । यह एक स्वानुभवका प्रकार है । इस सूत्रका भाव इन वाक्योंसे जानना चाहिये। ' जो कोई भिक्षु भत् क्षीणास्तव (गंगादिसे मुक्त ), ब्रह्मचारी, कृतस्य भारमुक्त, सत्य तत्वको प्राप्त, भव बन्धन मुक्त, सम्यग्ज्ञान द्वारा मुक्त ई पहचान कर न पृथ्वीको मानता है न पृथ्वी मेरी है मानता है, न पृथ्वीको अभिनन्दन करना है। इसका कारण यही है कि उसका राग द्वष, मो : क्षय होगया है, वह वीतराग होगया है ।
भी पृ वी को पृश्वीके तौरपर
पृ वी द्वारा मानता है,
इसीतरह वह नीचे लिखे विकल्पों को भी अपना नहीं मानत
न