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दूसग भाग! (२३) मज्झिमनिकाय महागोपालक सूत्र ।
गौतमबुद्ध कहते हैं-भिक्षुओ ! ग्यारह बातों ( अगो) से युक्त गोपालन गोयुथकी रक्षा करनेके भयोग्य है (१) रूप ( वर्ण ) का जाननेवाला नहीं होता. (२) लक्षणमें भी चतुर नहीं होता, (३) काली मक्तियोंको हटानेवाला नहीं होता, (४) घावका ढाकनेवाला बहीं होता, (५) धुश्रा नहीं करता, (६) तीर्थ ( जलका उनार) नहीं जानता, (७) पान को नहीं जानता, (८) वीथी (डगर) को नहीं जानता (९) चरागाइका जानकार नहीं होता, (१०) विना छोड़े (सारे) को दुह लेता है, (११) गायोंको पितरा, गायोंके स्वामो वृषभ (माढ) है, उनकी अधिक पूजा (भोजनदि प्रदान) नहीं करता।
ऐसे ही ग्यारह बातोंसे युक्त भिक्षु इस धर्म विनयमें वृद्धि विरूढ़ि, विपुलता पाने के अयोग्य है। भिक्षु-(१) रूपको जाननेपाला नहीं होता। जो कोई रूप है यह सब चार महाभूत (पृथ्वी, जल, वायु तेज ) और चार भूतोको लेकर बना है उसे यथार्थमे नहीं जानता।
(२) लक्षण चतुर नही होता-भिक्षु यह यथार्थ से नहीं जानता कि कर्मके कारण (लक्षण) से बाक ( अज्ञ ) होता है और कर्मके लक्षणसे पण्डित होता है।
(३) भिक्षु आसाटिक (काली मक्खियो) का हटानेवाला नहीं होता है-भिक्षु उत्पन्न काम (भोग वासना) के वितर्कका स्वागत करता है, छोडता नहीं, हटाता नहीं, अलग नहीं करता, भभावको प्राप्त नहीं करता, इसी तरह उत्पन्न व्यापाद (परपीड़ा) के