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दुसरा भाग।
Marva
समधिगतसमस्ता सर्वप्ताय द्या स्वहितनिहितचित्ता शान्तसर्वप्रचाग । स्वपरमफलजल्पा सर्वसकल्पमुक्ता कथमिह न विमुक्तेर्भाजन ते विमुक्त' ॥ २२६ ॥
भावाथ-जिन्होंने सर्व शास्त्रोंका रहस्य जाना है, जो सर्व पापोंसे दूर हैं, जिन्होंने आत्म कल्याणमें अपना मन लगाया है, जिन्होंने सर्व इन्द्रियोंकी इच्छाओंको शमन कर दिया है, जिनकी वाणी स्वपर कल्याणकारिणी है, जो सर्व सकल्पोंसे रहित है, ऐसे विरक्त साधु निर्वाणके पात्र क्यों न होगे ? अवश्य होंगे।
ज्ञानार्णवम कहा हैआशा सद्यो विपद्यन्ते यान्त्य विद्या क्षय क्षणात् । म्रपते चित्तभोगीन्द्रो यस्य सा साम्यभावना ॥ ११-२४ ॥
भावार्थ-जिसके समभावकी शुद्ध भावना है, उसकी आशाए शीघ्र नाश होजाती है, अविद्या क्षणभरमें चलो जाती है, मनरूपी नाग भी मर जाता है।
(२२) मज्झिमनिकाय महागोसिंग सूत्र ।
एकसमय गौतम बुद्ध गोसिंग साल्वनमें बहुतसे प्रसिद्ध २ शिष्योंके साथ विहार करते थे। जैसे सारिपुत्र, महामौद्गलायन महाकाश्यप, अनुरुद्ध, रेवत, आनन्द आदि ।
महामौद्गलायनकी प्रेरणासे सायकालको ध्यानसे उठकर प्रसिद्ध भिक्षु सारिपुत्रके पास धर्मचर्चा के लिये आए ।