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जोन बैद्ध तत्वज्ञान |
अप्पा बाउ जइ मुगहित णित्र णु हेहि । हु ससार भमेहि ॥
पर अप्पा जड मुणिह तुहु भावार्थ - यदि तू अपनमे आपको ही अनुभव करेगा तो निर्वाण पानेगा और जो घरको आप मानेगा तो तू मसार में ही अमेगा ।
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१२ ॥
जो परमा सो जि हउ जो हउ सा परपप्पु ।
इउ जाणे वेणु जेइमा अण्ण मकरहु विप् ॥ २२ ॥ भावार्थ- जो परमात्मा है वही मैं जो मै मात्मा है ऐसा समझकर हे योगी । और कुछ विचार न कर ।
सो ही पर
हू,
सुद्धु सचेण बुद्ध जिणु कवळण णमहाउ | सोप्या अणुदण मुणहु जइ चाहउ सिषळाडु ॥ २६ ॥
भावार्थ- जो तू निर्वाणका काम चाहता है तो तू रात दिन उसी आत्माका अनुभव कर जो शुद्ध है, चैतन्यरूप है, ज्ञानी व वृद्ध है, रागादि विजयी जिन है तथा कवलज्ञान स्वभाव धारी है । जोरम, छडवि सहुषबहारु ।
सो सम्माइट्ठी व लहु पावइ भवपारु ॥ ८८ ॥
भावार्थ - जो कोई सर्व लोक व्यवहारसे ममता छोडकर अपने आत्मा के स्वरूपमें रमण करता है वही सम्यग्दृष्टी है, वह शीघ्र समारसे पार होजाता है ।
सारसमुच्चयमे कहा है
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शत्रुभावस्थितान् यस्तु करोति वशवर्तिन |
प्रज्ञा प्रयोगसामर्थ्यात् स शूर स च पंडित ॥ २९० ॥
भावार्थ- जो कोई राग द्वेष मोहादि भावोंको जो मात्मा के