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________________ जोन बैद्ध तत्वज्ञान | अप्पा बाउ जइ मुगहित णित्र णु हेहि । हु ससार भमेहि ॥ पर अप्पा जड मुणिह तुहु भावार्थ - यदि तू अपनमे आपको ही अनुभव करेगा तो निर्वाण पानेगा और जो घरको आप मानेगा तो तू मसार में ही अमेगा । [ १८६ १२ ॥ जो परमा सो जि हउ जो हउ सा परपप्पु । इउ जाणे वेणु जेइमा अण्ण मकरहु विप् ॥ २२ ॥ भावार्थ- जो परमात्मा है वही मैं जो मै मात्मा है ऐसा समझकर हे योगी । और कुछ विचार न कर । सो ही पर हू, सुद्धु सचेण बुद्ध जिणु कवळण णमहाउ | सोप्या अणुदण मुणहु जइ चाहउ सिषळाडु ॥ २६ ॥ भावार्थ- जो तू निर्वाणका काम चाहता है तो तू रात दिन उसी आत्माका अनुभव कर जो शुद्ध है, चैतन्यरूप है, ज्ञानी व वृद्ध है, रागादि विजयी जिन है तथा कवलज्ञान स्वभाव धारी है । जोरम, छडवि सहुषबहारु । सो सम्माइट्ठी व लहु पावइ भवपारु ॥ ८८ ॥ भावार्थ - जो कोई सर्व लोक व्यवहारसे ममता छोडकर अपने आत्मा के स्वरूपमें रमण करता है वही सम्यग्दृष्टी है, वह शीघ्र समारसे पार होजाता है । सारसमुच्चयमे कहा है -- शत्रुभावस्थितान् यस्तु करोति वशवर्तिन | प्रज्ञा प्रयोगसामर्थ्यात् स शूर स च पंडित ॥ २९० ॥ भावार्थ- जो कोई राग द्वेष मोहादि भावोंको जो मात्मा के
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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