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जौन बैद्ध तत्वज्ञान |
[ 44 गृहिणी और काली दासका दृष्टा दिया है। वह गृहिणी ऊपरसे शात या, मातरम कोपयुक्त थी । जो दामी विनयी व स्वामिनीकी आज्ञानुसार समभाव करनदात्री यी यह यदि कुछ दे मे उठी हो तो स्वामियोको शाल भावसे कारण पूछना चाहिये । यदि वह कारण छती कोष करती तो उसका वासे उसको पतोष होजाता । वह कह देती कि शरीर अस्वस्थ होनेमे देरसे उठी हू । इम हातको देकर भिक्षुओं को उपदेश दिया गया है कि स्वार्थसिद्धिक लिये ही शात भाव न खो किन्तु धर्मलाभ के लिये शातभाव रक्खो : कोषमा वैरी है ऐसा जानकर कभी कोष न करो तथा साधुको कल पड़ने पर भी, इच्छित वस्तु न मिलने पर भी मृदुभाषी कोमक परिणामी रहना चाहिये ।
(५) उत्तम क्षमा या भाव अहिसा या विश्वमेम रखनेकों कड़ी शिक्षा साधुओं को दी गई है कि उनको किसी भी कारण मिलन पर दुर्वचन सुननपर या शरोरके टुकड़े किये जाने पर भी मनमें विकारभाव न लाना चाहिये, द्वेष नहीं करना चाहिये, उपसर्गकपर भी मैत्रीभाव रखना चाहिये ।
पाच तरहसे प्रवचन कहा जाता है - (१) समयानुमार कहना, (२) सत्य कहना, (३) प्रेमयुक्त कहना, (४) सार्थक करना, (५) मैत्रीपूर्ण चिचसे कहना | पाच तरहसे दुर्वचन कहा जाता है- (१), विना अवसर कहना, (२) असत्य कहना, (३) कठोर वचन कहना, (४) निरर्थक कहना, (५) द्वेषपूर्ण चित्तसे कहना । साधुका कर्तव्य है कि चाहे कोई सुवचन कहे या कोई दुर्वचन कहे दोनों दशाओंमे सम