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जैन पौद तत्त्वान। [१४९ (१६) मज्झिमनिकाय ककचूयम (क्रकचोयम) सूत्र।
गौतमबुद्ध कहते है-एक दफे मैंने भिक्षुओंको बुलाकर कहा--- भिक्षुषों ! मैं एकासन (एक) भोजन सेवन करता है । (एकासनभोजन मुजामि) एकासन भोजनका सेवन करने में स्वास्थ्य, निरोग, स्फूर्ति, बल और प्राशु विहार (कुशलपूर्वक रहना) भपनेमें पाता है। भिक्षु मों ! तुम भी एकासन भोजन सेवन कर स्वास्थ्यको प्राह करो। उन भिक्षुओंको मुझे अनुशासन करनेकी आवश्यक्ता नहीं थी। केवल याद दिलाना ही मेरा काम था जैसे-उद्यान (सुमि)में चौराहोपर कोड़ा सहित घोड़े जुता माजाने व (उत्तम घोड़ोंका) रथ खड़ा हो उसे एक चतुर स्थाचार्य, अश्वको दमन करनेवाला सारथी बाए हाथमें जोतको पकड़कर दाहने हाथमें कोडेको ले जैसे चाई, जिधर चाहे लेजावे, लौटावे ऐसे ही भिक्षुओं ' उन भिक्षुओंको मुझे मनुशासन करनेकी आवश्यक्ता न थी। केवल याद दिलाना ही मेरा काम था।
इसलिये मिक्षुओ! तुम मी अकुशल (बुराई) को छोड़ो। कुशल धर्मों (अच्छे कामों) में लगी। इस प्रकार तुम भी इस धर्म विनयो वृद्धि, विरूढ़ि व विपुलताको प्राप्त होंगे। जैसे गावके पास सघन तासे आच्छादित महान साल ( साखू) का बन हो उसका कोई हितकारी पुरुष हो वह उस सालके रसको अपहरण करनेवाली टेढी हालियोंको काटकर बाहर लेजावे, वनके भीतरी भागको अच्छी तरह साफ करदे और जो सालकी शाखाएं सीधी सुन्दर तौरसे निकली हैं, उन्हें अच्छी तरह रक्खे इसप्रकार वह साल वन वृद्धि के विपु