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दूसरा भाग। हटाना चाहिये । जब वे शात होगए हों तब तो सावधान होकर निश्चिन्त होकर आत्मध्यान करना चाहिये। स्मरण रखना चाहिये कि फिर कहीं किन्हीं कारणोंसे रागद्वेष न होजावें ।
दूसग दृष्टात जलाशय तथा मृगोंका दिया है कि जैसे मृग जलाशयके पास चरते हो, कोई शिकारी जाल बिछा दे व जालमें फमने का मार्ग खोल दें तब वे मृग जाल्मे फसकर दु ख उठाते हैं, वैसे ही ये ससारी प्राणी कामभोगोंसे भरे हुए मसारके भारी जला शयके पास घूम रहे हैं । यदि वे भोगोंकी नन्दी या तृष्णाके वशी भूत हों तो वे मिथ्या मार्गरर चलकर अविद्याके जालमें फम जावेंगे व दुख उठावेंगे। मिथ्या मार्ग मिथ्या श्रद्धान, मिथ्या ज्ञान व मिथ्या चारित्र है । यही भष्टागरूप मिथ्यामार्ग है। निवाणको हितकारी न जानना, ससारमे लिप्त रहनेको ही ठीक श्रद्धान करना मिथ्यादृष्टि है। निर्वाणकी तरफ जानेका सकल्प न करके ससास्की तरफ जानेका सकल्प या विचार करना मिथ्या सकल्प या मिथ्या ज्ञान है। शेष छ बातें मिथ्या चारित्रमें गर्मित हैं। मिथ्या कठोर दुखदाई विषय पोषक वचन बोलना, मिथ्या वचन है समारवर्द्धक कार्य करना मिथ्या कर्माह्न है, असत्यसे व चोरीसे आजीविका करके अशुद्ध, गगवर्धक, गगकारक भोजन करना, मिथ्या आजीव है। संसारवर्धक धर्मके व तपके लिय उद्योग करना, मिथ्या व्यापाद है। ससारवर्धक क्रोधादि कषायोंकी व विषय भोगोंकी पुष्टिकी स्मृति , रखना मिथ्या स्मृति है। विषयाकाक्षासे व किसी परलोकके लोभसे ध्यान लगाना मिथ्या समाधि है। यह सब भविद्यामें फंसनेका