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जोन बैद्ध तत्वज्ञान |
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[ १३५ बाक है, ससार मार्गवर्द्धक है, ऐसा विचारना चाहिये । इसके विरुद्ध निष्कामभाव या वीतरागभाव तथा वीतद्वेष या अहिंसकभाव अपने भीतर शांति व सुख उत्पन्न करता है । कोई भाकुलता नहीं होती है । दूसरे भी जो सयोगमें आते हैं व वाणीको सुनते हैं उनको भी सुखशाति होती है। वीतराग तथा असामई भावसे किसी भी प्राणीको कष्ट नहीं दिया जासक्ता, किसीके प्राण नहीं पीड़े जाते । सर्व प्राणी मात्र अभय भावको पाते है। रागद्वेषसे जब कमौका बन्ध होता है तब वीतरागभावसे कर्मो का क्षय होकर निर्वाण प्राप्त होता है ।
ऐसा वारवार विचारकर भेदविज्ञानके अभ्यास से वीतराग या वीद्वेष भावकी वृद्धि करनी चाहिये तब ही ध्यानकी सिद्धि हो सकेगी। भेदविज्ञान में तो विचार होते हैं । चित्त चचल रहता है | समाधान व शाति नहीं होती है । इसलिये साधक विचार करते२ अध्यात्मरत होजाता है, अपने में एकाग्र होजाता है, ध्यानमग्न होजाता है, तब चित्तको परम शांति प्राप्त होती है। जब ध्यानमें चित्त न लगे तब फिर भेदविज्ञानका मनन करते हुए अपनेको कामभाव व द्वेषभाव या हिंसात्मक भावसे रक्षित करे । सुत्रमें ग्वालेका दृष्टान्त इसीलिये दिया है कि ग्वाला इस बातकी सावधानी रखता है कि गाएं खेतोंको न खालें। जब खेत हरेभरे होते हैं तब गायको वारवार जाते हुए रोकता है। जब खेत फसल रहित होते है तब गायको स्मरण रखता है, उनसे खेतों की हानिका भय नहीं रखता है। इसीतरह ज़ब तक कामभाव व द्वेषभाव जागृत होरहे हैं, उद्योग करते भी रामद्वेष होलादे हैं, कामको हारकार विचार करके उनसे लड़को
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