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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान । [१२९ जीता है, भयको जीता है, कषायोंको जीता है, रति भरति व मोहका जिसने नाश किया है वही सदाकाल ध्यानमें उपयुक्त रह सक्ता है। श्री शुभचद्राचार्य ज्ञानार्णवम कहते हैविग्म विरम समान्मुत्र मुचप्रपचविसृज विसृज मोह विद्धि विद्धि स्वतत्त्वम् ॥ कलय कलय वृत्त पश्य पश्य स्वरूप । कुरु कुरु पुरुषार्थे निवृतानन्दहेतो ॥ ४५-१५ ।। भावार्थ-हे भाई ! तू परिग्रहसे विरक्त हो, जगतके प्रपंचको छोड़, मोहको विदा कर, आ.मतत्वको समझ, चारित्रका अभ्यास कर, भात्मस्वरूपको देख, मोक्षके सुख के लिये पुरुषार्थ कर । (१४) मज्झिमनिकाय द्वेधा वितक सूत्र । गौतम बुद्ध कहते है-भिक्षुओ। बुद्धत्व प्राप्तिक पूर्व भी बोधिसत्व होते वक्त मेरे मनमें ऐसा होता था कि क्यों न दो टुक वितर्क करते करते मै विहरू-जो काम वितर्क, व्यापाद (द्वेष) वितर्क, विहिंसा वितर्क इन तीनोंको मैन एक भागमें किया और जो नैष्काम्य (काम भोग इच्छा रहि1) वितर्क, अल्पापाद वितर्क, अविहिंसा वितर्क इन तीनोंको एक भागमें किया। भिक्षुओ ! सो इस प्रकार प्रमाद रहित, भातापी ( उद्योगी), ग्रहितत्रा (मात्म संयमी) हो विहरते भी मुझे काम वितर्क उत्पन्न होता था। सो मैं इस प्रकार जानता था। उत्पन्न हुआ ग्रह मुझे काम वितर्क और यह आत्म आवाधाके लिये है, पर आबाधा के लिये है, 'उभय आबा
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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