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________________ जैन बौद तत्वज्ञान । [१२१ मिला दिये गए हों, दुखित किये गए हों तो यह मेरा अयोग्य *कार्य मिथ्या हो । अर्थात् मैं इस भूलको स्वीकार करता हू । विमुक्तिमार्गप्रतिकूलवर्तिना भया कषायाक्षवशेन दुर्षिया । चारित्रशुद्धर्यदकारिलोपन तदस्तु मिथ्या मम दुष्कृत प्रभो ॥ ६॥ ___ भावार्थ-मोक्षमार्गसे विरुद्ध चलकर, क्रोधादि कषाय व पाचों इन्द्रियोंके वशीभूत होकर मुझ दुर्बुद्धिने जो चारित्रमें दोष लगाया हो वह मेरा मिथ्या कार्य मिथ्या हो अर्थात् मै अपनी भूलको स्वीकार करता हूँ। विनिन्दनालोचनगईणरह, मनोवच कायकषायनिर्मितम् । निहन्मि पाप भवदु खकारण भिषगविष मत्रगुणैरिवाखिल ॥ ७ ॥ ___ भावार्थ-जैसे वैद्य सर्पले सर्व विषको मत्रोंको पढ़कर दूर कर देता है वैसे ही मैं मन, वचन, काय तथा क्रोधादि कषायोंके द्वारा किये गए पापोंको अपनी निन्दा, गर्दा, मालोचना आदिमे दूर करता हू, प्रायश्चित्त लेकर भी उस पापको धोता है। (१३) मज्झिमनिकाय चेतोखिलसूत्र। गौतमबुद्ध कहते है-भिक्षुओ। जिस किसी भिक्षुके पाच चेतोखिल (चित्तके कील ) नष्ट नहीं हुए, ये पाचों उसके चित्तमें वद्ध है, छिन्न नहीं है, वह इस धर्म विषयमें वृद्धिको प्राप्त होगा यह सभव नहीं है। पांच चेतोखिळ-(१) शास्ता, (२) धर्म, (३) सघ, (४) शील, इन चारमें सदेह युक्त होता है, इनमें श्रद्धालु नहीं होता।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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