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________________ २१२] दूसरा भाग। "परिग्रहः ॥ १७ ॥ पर पदार्थोंमें ममत्व भाव ही परिग्रह है। बाहरी पदार्थ ममत्व भाव के कारण है इसलिये गृहस्थी प्रमाण करता है, साधु त्याग करता है । वे दश प्रकारके हे।"क्षेत्रवास्तु हिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्पप्रमाणातिकमा "॥२९॥ (१) क्षेत्र (भमि), (२) वास्तु (मकान), (३) हिरण्य (चादी), (४) सुवर्ण (सोना जवाहरात), ५ धन (गो, भेंस, घोड़े, हाथी), ६ धान्य (अनाज), ७ दासी, ८ दास, ९ कुप्य (कपड़े), १० भाड (वर्तन) "अगार्यनगारश्च" । १९ । व्रती दो तरहके है-गृहस्थी (सागार) व गृहत्यागी ( अनगार )। " हिसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ॥१॥ " देशसर्वतोऽणुमहती" ॥२॥ "अणुव्रतोऽगारी ॥ २० ॥ भावार्थ-हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील (भब्रह्म, तथा परिग्रह, इनसे विरक्त होना व्रत है । इन पापोको एकदेश शक्ति के अनुसार त्यागनेवाला अणुव्रती है। इनको सर्वदेश पूर्ण त्यागनेवाला महाव्रती है । अणुव्रती सागार है, महाव्रती अनगार है । अतएव अणुव्रती अल्प सुखशातिका भोगी है, महाव्रती महान सुखशातिका भोगी है। श्री समतभद्राच र्य रत्नकरण्डश्रावकाचारमे कहते हैमोहति मापहरणे दर्शनळाभादवाप्तसज्ञान । रागद्वेषनिवृत्त्यै चरण प्रतिपद्यते साधु ॥ ४७ ॥ भावार्थ-मिथ्यात्वके अधकारके दूर हो जानेपर जब सम्यग्दर्शन तथा सम्यक्ज्ञानका लाभ होजावे तब साधु राग द्वेषके हटाने के लिये चारित्रको पालते हैं।
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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