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जैन बौद्ध तत्वज्ञान |
जैन सिद्धातके वाक्य इस प्रकार हैंपुरुषार्थसिद्धयपायमें कहा हैनिश्वयमिह भूतार्थं व्यवहार वर्णयन्त्यभूतार्थम् । भूतार्थो विमुख प्राय सर्वोऽपि समर ॥ ९ ॥ भावार्थ - निश्चय दृष्टि सत्यार्थ है, व्यवहार दृष्टि अनित्यार्थ है क्योंकि क्षणभगुर ससारकी तरफ है । प्राय संमारके प्राणी सत्य पदार्थ के ज्ञान से बाहर है - निश्वदृष्टिको या परमार्थदृष्टिको नहीं जानते है ।
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समयसार कलश में कहा है
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एकस्य भावो न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ । यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्य खलु चिच्चिदेव ॥ ३६-३ ॥ भावार्थ-व्यवहारनय या दृष्टि कहती है कि यह आत्माकमसे बन्Eा हुआ है । निश्चय दृष्टि कहती है कि यह आत्मा कर्मों से बघा हुआ नहीं है । ये दोनों पक्ष भिन्न २ दो दृष्टियोंके है, जो कोई इन दोनों पक्षको छोडर स्वरूप गुप्त होजाता है उसके अनुभवमें चैतन्य चैतन्य स्वरूप ही मासता है । और भी कहा हैय एत्र मुक्तवानयपक्षपात स्वरूपगुप्ता विनसन्ति नित्य ॥ विकल्पजाळच्युतशान्तचित्तास्त एव साक्षादमृत पिन्ति ॥ २४-३॥
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भावार्थ- जो कोई इन दोनों दृष्टियों के पक्षको छोड़कर स्वस्वरूपमें गुप्त होकर नित्य ठहरते है, सम्यक् समाधिको प्राप्त कर लेते हैं वे सर्व विकल्प जालोंसे छूटकर शात मन होते हुए साक्षात् आनन्द अमृतका पान करते हैं, उनको निर्वाणका साक्षात्कार होजाता है, वे परम सुखको पाते है। और भी कहा है: