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________________ मैन बौद्ध तत्वान। [६९ नहीं करते । या तो केवल काम उपादान त्याग करते हैं या काम और इष्ट उपादान त्याग करते है या काम, दृष्टि और शीलवत उपादान त्याग करते है। किंतु मार्तवाद उपादानको त्याग नहीं करते क्योंकि इस बातको ठीकसे नहीं जानते । भिक्षुओ। ये चारों उपादान तृष्णा निदानवाले हैं, तृष्णा समुदयवाले हैं, तृष्णा जातिवाले हैं और तृष्णा प्रभववाले हैं। तृष्णा वेदना निदानवाली है, वेदना स्पश निदानवाली है, स्पर्श षडायतन निदानवाला है। षडायतन नाम-रूप निदानवाला है। नाम-रूप विज्ञान निदानवाला है। विज्ञान सस्कार निदानवाला है। सस्कार अविज्ञा निदानवाले हैं। भिक्षुओ ! जब भिक्षुकी अविद्या नष्ट होजाती है और विद्या उत्पन्न होजाती है। अविद्याके विरागसे, विद्याकी उत्पत्तिसे न काम उपादान पकड़ा जाता है न दृष्टि उपादान न शीलवत उपादान न भात्मवाद-उपादान पकड़ा जाता है। उपादानोंको न पकड़नेसे भयभीत नहीं होता, भयभीत न होनेपर इसी शरीरसे निर्वाणको प्राप्त होजाता है “जन्म क्षीण होगया, ब्रह्मचर्यवास पूरा होगया, करना था सो कर लिया, और अब यहा कुछ करनेको नहीं है-" यह जान लेता है। नोट-इस सूत्रमें पहले चार बातोको धर्म बताया है (१) शास्ता (देव) में श्रद्धा, (२) धर्ममें श्रद्धा, (३) शीलको पूर्ण पालना, (४) साधर्मीसे प्रीति । फिर यह बताया है कि जिसकी श्रद्धा चारों धर्मोंमें होगी उसकी श्रद्धा ऐसे शास्ता व धर्ममें होगी, जिसमें राग नहीं, द्वेष
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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