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________________ जैन बौद्ध तत्वज्ञान। (८७ चार स्मृति प्रस्थानोंको मनन करेगा वह अरहत पदका साक्षात्कार करेगा । उसको सत्यकी प्राप्ति होगी, वह निर्वाणको प्राप्त करेगा व निर्वाणको साक्षात् करेगा । इन वाक्योंसे निर्वाणके पूर्वकी अवस्था जैनोंके अर्हत पदसे मिलती है और निर्वाणकी अवस्था सिद्ध पदसे मिलती है। जैनोंमें जीवनयुक्त परमात्माको अरहन्त कहते है जो सर्वज्ञ वीतराग होते हुए जन्म भरतक धर्मोपदेश करते है । वे ही जब शरीर रहित व कर्म रहित मुक्त होजाते है तब उनको निर्वाणनाथ या सिद्ध कहते हैं। यह सूत्र बडा ही उपकारी है व जैन सिद्धातसे बिलकुल मिल जाता है। (९) मज्झिमनिकाय चूलसिंहनाद सूत्र । गौतम बुद्ध कहते है-भिक्षुओ होसक्ता है कि अन्य तैर्थिक ( मतवाले ) यह कहें। आयुष्मानोको क्या माश्वास या बल है जिससे यह कहते हो कि यहा ही श्रमण है। ऐसा कहनेवालोंको तुम ऐसा कहना-भगवान जाननहार, देखनहार, सम्यक् सम्बुद्धने हमें चार धर्म बताए है। जिनको हम अपने भीतर देखते हुए ऐसा कहते है 'यहा ही श्रवण है।' ये चार धर्म है-(१) हमारी शास्तामें श्रद्धा है, (२) धर्ममें श्रद्धा है, (३) शील (सदाचार)में परिपूर्ण करनेवाला होना है, (४) सहधर्मी गृहस्थ और प्रवजित हमारे प्रिय हैं। हो सकता है अन्य मतानुवादी कहे कि हम भी चारों बातें मानते हैं तब क्या विशेष है। ऐसा कहनेवालोंको कहना क्या
SR No.010041
Book TitleJain Bauddh Tattvagyana Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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