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हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन हो जानेपर भी वसन्तसेना कहती है-"मेरा धन तुम्हारा है चारु । मैं आपकी दासी हूँ, मुझे अन्य न समझिये नाथ ।" जब वसन्तसेनाकी माँ निर्धन चारुदत्तको ठुकराना चाहती है तो वह खीझ उठती है-"कितनी निष्ठुर हो मॉ, जिसने तुम्हें छप्पनकोटि दीनारें दी, उसे ही निर्धन कहती हो।" पुनः चारुदत्तसे प्रार्थना करती है-"मुझे स्वीकार करो नाथ, मैं आपकी गृहिणी बनूंगी।" ___'परिवर्तन' कहानी मे प्रकट किया गया है कि खूखार पुरुप नारीके मधुर सहयोगको पाकर ही मनुष्य बनता है। सम्राट् श्रेणिक अभिमान आकर मुनिके गलेमें मृत सर्प डाल देता है, घर आनेपर अपने इस कार्यकी आत्मप्रशसा करता हुआ अपनी पत्नी चेलनासे मुनिनिन्दा करता है। सम्राज्ञी मधुर और विनीत वचनोमें समझाती हुई सनाटके हृदयको परिवर्तित कर देती है । "चार दिन नहीं नाथ, चार महीने बीत जानेपर भी साधु उपसर्ग उपस्थित होनेपर डिगते नहीं।" वचन सुनते ही श्रेणिकका मिथ्यामिमान चूर-चूर हो जाता है।
इस सग्रहकी कहानियॉ अच्छी है। पौराणिक आख्यानोमे लेखकने नयी जान डाल दी है।
प्लॉट, चरित्र और दृश्यावली (Background) की अपेक्षासे इस सग्रहकी कहानियोंमे लेखक बहुत अोंमे सफल हुआ है किन्तु स्थितिको प्रोत्साहन देने और कहानियोको तीनतम स्थितिमे पहुँचानेमे लेखक असफल रहा है । और उत्सुकता गुण भी पूर्ण रूपसे इन कहानियोंमें नहीं आ सका है । कल्पना और भावका सम्मोहक सामनस्य करनेका प्रयास लेखकने किया है, पर पूर्ण सफलता नहीं मिल सकी है।
इस बीसवी शतीकी जैन कहानियोंमे श्री स्व. भगवत् स्वरूप 'भगवत्' की कहानियाँ अधिक सफल हैं। उनकी कुछ कथाएँ तो निश्चय बेजोड़ हैं । रसभरी, उस दिन, मानवी नामके कहानी सकलन प्रकाशित हो चुके है।