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कथा-साहित्य
और अर्वाचीन हिन्दी गद्यमे अनूदित की जा चुकी है । आराधना कथाकोग, वृहत्कथाकोश, सप्तव्यसन चरित्र और पुण्यासवकथाकोशके अनुवाद कथा साहित्यकी रिसे उल्लेख योग्य हैं। उपर्युक्त अन्थोमे एक साथ अनेक कथाओका सकलन किया गया है और ये सभी कथाएँ जीवनके मर्मको स्पर्श करती हैं। यद्यपि इन कथाओमें आजका रंग और टीप-चाप नहीं है तो भी जीवनके तारोंको झकृत करनेकी क्षमता इनमे पूर्ण रूपसे विद्यमान है।
यह कई भागोंमे प्रकाशित हुआ है। इसके अनुवादक उदयलाल काशलीवाल है। प्रथम मागमे २४ कथाएँ, द्वितीय भागमे ३८ कथाएँ, माराधनाकया तृतीय भागमै ३२ कथाएँ और चतुर्थ भागमे २० र कथाएँ है। अनुवाद स्वतन्त्ररूपसे किया गया है।
अनुवादकी भापा सरल है। कथाएँ सभी रोचक है, अहिंसा संस्कृतिकी महत्ता व्यक्त करती हैं तथा पुण्य-पापके फलको जनताके समक्ष रखती है। यदि इन कथाओंको आजकी शैलीमे जनताके समक्ष रखा-जाय, तो निश्चय ही जैन साहित्यके वास्तविक गौरवको जनसाधारण हृदयगम कर सकेगा।
इसके दो भाग अभी तक प्रकाशित हो चुके हैं, कुल कथाएँ चार भागोमे प्रकाशित की जा रही है । प्रथम भागमें ५५ कथाएँ और द्वितीय
- भागमें १७ कथाएँ है । इसके अनुवादक प्रो० राजकुमार
साहित्याचार्य है । अनुवाद बहुत सुन्दर हुआ है, भापा सरल और सुसम्बद्ध है । अनुवादकने मूल भावोको अक्षुण्ण रखते हुए भी रोचक्ताको नष्ट नहीं होने दिया है।
१. प्रकाशक-जैनमित्र कार्यालय हीरावाग, बम्बई । २. प्रकाशक-भा० विगम्बर जैन संघ, चौरासी, मथुरा।