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________________ हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन अधिकांश जैन कहानियाँ व्रतोंकी महत्ता दिखलाने और व्रतपालन करनेवालेके चरित्रको प्रकट करनेके लिए लिखी गयी है । सम्यत्तवकौमुदीभापा, वरोगकुमार चरित्र, श्रीपालचरित्र, धन्यकुमार चरित्र आदि कथाएँ जीवनकी व्याख्यात्मक है। अनन्तव्रत कथा, आदित्यवार कथा, पचकल्याणकवत कथा, निशिभोजन त्यागवत कथा, शील कथा, दर्शन कथा, दान कथा, श्रुतपंचमीव्रत कथा, रोहिणीव्रत कथा, आकाश पञ्चमी कथा, आदि कथाएँ एक विशेष दृष्टिकोणको लेकर लिखी गयी हैं। सम्यक्त्व कौमुदी धार्मिक तथा मनोरजक कथाओंका सग्रह है । इसमें मथुराका सेठ अर्हदास अपने सम्यत्वलाभकी कथा अपनी आठ पलियोको सुनाता है । कुन्दलताको छोड़कर शेष सभी स्त्रियाँ उसके कथनपर विश्वास करती है। सेठकी अन्य सात स्त्रियाँ भी अपने-अपने सम्यक्त्वलामकी बात सुनाती है । कुन्दलता इनका भी विश्वास नहीं करती है । इस नगरका राजा उदितोदय, मन्त्री सुबुद्धि और सुपर्णखुर चोर भी छुपकर इन कथाओको सुनते है। उन्हे इन घटनाओपर विश्वास होता जाता है। राजा कुन्दलताके विश्वास न करनेसे क्षुब्ध है। अन्तमे कुन्दलता भी इन कथाओसे प्रभावित हो जाती है। सेठ अर्हदास, राजा, मन्त्री, सेठकी स्त्रिया, रानी, मन्त्रिपनी सबके सब जैनदीक्षा ले लेते है | कुन्दलता भी इनके साथ दीक्षित हो जाती है। तपस्याकै प्रभावसे कोई निर्वाण प्राप्त करता है, तो कोई स्वर्ग। मुख्य कथाके भीतर एक सुयोधन राजाकी कथा भी आयी है और उसीके अन्दर अन्य सात मनोरंजक और गम्भीर सकेतपूर्ण कहानियाँ समाविष्ट हैं। जैन हिन्दी कथा साहित्य दो रूपोमे उपलब्ध है-अनूदित और पौराणिक आधार पर मौलिक रूपमे रचित । अनूदित कथा साहित्य विशाल है । प्रायः समस्त जैन कथाएँ प्राचीन
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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