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उपन्यास
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पात्र
कुछ दिनों बाद मनोवतीके कहनेसे उनका सम्मान किया। इसी बीच वल्लमपुर-नरेश द्वारा निमन्त्रित होनेपर सभी वहाँ चले गये। ___ यही इस उपन्यासकी कथावस्तु है । कथावस्तु पौराणिक होनेके कारण कोई नवीनता इसमे नहीं है । नारी-सौन्दर्य और सम्पत्तिका निरूपण शचीन प्रणालीपर हुआ है। कथानकमें लौकिक प्रेमके दिग्दर्शनके साथ अलौकिकताका भी समन्वय किया गया है, यही इसकी विशेषता है।
इस उपन्यासके प्रधानपात्र है-मनोवती और बुद्धिसेन । अन्य सब पात्र गौण हैं । मनोवती स्वय इस उपन्यासकी नायिका है । इसका चित्रण
एक आदर्श भारतीय लल्नाके स्पमें हुआ है। धर्म
और आदर्शमें इसकी अनन्य श्रद्धा है। अपनी प्रखर प्रतिमाके कारण यह आठ महीने में ही शिक्षामे पारगत हो जाती है। इसकी धर्मपरायणताका ज्वलन्त उदाहरण तो हमें तब मिलता है, जब वह तीन दिन सतत उपवास करती रह जाती है, पर बिना गजमुत्ता चढ़ाये भोजन नहीं करती। नारी-सुलभ सहन सक्रोचकी भावना उसमे व्यास है। भारतीयता और पातिव्रतसे ओत-प्रोत यह नारी दुःखमें भी पतिका साथ नहीं छोड़ती। पति दूसरी शादी कर लेता है, पर पतिके सुखका ख्यालकर वह तनिक भी बुरा नहीं मानती। जैनधर्ममे अटल विश्वास रखते हुए वह सदा पतिको सदगुणोकी और प्रेरित करती है। लेखक मनोवतीके चरित्र-चित्रणमें बहुत अंशोमें सफल हुआ है । मनोवैज्ञानिक घात-प्रतिधार्ताका विश्लेषण भी कर सका है।
बुद्धिसेनको इस उपन्यासका नायक कहा जा सकता है, किन्तु लेखक इसके चरित्र-विश्लेषणमे सफल नहीं हुआ है। आरम्भमे बुद्धिसेन सदाचारीकै रूपमे थाता है, पर पीछे “ममता पाइ काहि मद नाही" कहावतके अनुसार धन-मटके कारण व्ह क्रूर और कृतघ्नी हो जाता है। अपनी पहली पत्नी मनोवतीके उपकारोंको विस्मृत कर दूसरी शादी कर लेता है और अपने माता-पिता तथा बन्धुओंको अपार कष्ट देता है। एक