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स्फुट कविताएँ
बनती कठपुतली पतिकी, जिस दिन कर होते पीले। पति इच्छा पर ही निर्भर, हो जाते स्वप्न रंगीले ॥ केवल विलास सामग्री, ही मानी जाती ललना। गृहिणी को घर में लाकर, वे समझा करते चेरी ॥
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कब नारी अपने खोये, स्वत्वोंको प्राप्त करेगी । कब वह निज जीवन पुस्तक, का नव अध्याय रचेगी।
कुमार महावीर राजसिंहासनकी सत्तासे उत्पन्न दोपोके प्रति विद्रोहात्मक चिन्तन करते हैं। इस चिन्तनमे कवि आजकी राजनीतिसे पूर्ण प्रभावित है । अतः युगका चित्र खींचता हुआ कवि कहता है
पूंजीपति इनके आश्रित, रह सुखकी निद्रा सोते । पर श्रमिक कृपक गण जीवन भर दुखकी गठरी ढोते ॥
x समानता, करुणा, लेह और सहानुभूतिके अमर छींटोसे यह काव्य ओत-प्रोत है। पापके प्रति घृणा और पापीके प्रति करुणा तथा उसके उद्धारकी सद्भावना इसमे पूर्णरूपसे विद्यमान है । कवि कहता है
दुष्पाप अवश्य घृणित है, पर घृणित नहीं है पापी।
यदि सद्व्यवहार करो वह, बन सकता पुण्यप्रतापी ॥ विरागकी शैली रोचक, तर्कयुक्त और ओजपूर्ण है। भाव छन्दोम बाँधे नही गये है, अपितु भावोके प्रवाहमें छन्द बनते गये है। अतः कवितामें गत्यवरोध नहीं है । हॉ एकाध स्थलपर छन्दोमग है, पर प्रवाहम वह खटकता नहीं है । भाषा सरल, सुबोध और भावानुकूल है।
स्फुट कविताएँ विचार-जगत्मे होनेवाले आवर्तन और विवर्तन, प्रवर्तन और परिवर्तन . के आधारपर इस बीसवीं शतीकी फुट जैन कविताओंका सम्यक् वर्गीकरण