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________________ २३२ " १८६७ " १८६५ हिन्दी-जैन साहित्य-परिशीलन ३ द्रव्यसंग्रहवचनिका , १८६३ ४ आत्मख्यातिसमयसार , १८६४ ५ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेभा , १८६६ ६ अष्टपाहुड ७ ज्ञानार्णव ८ भक्तामरस्तोत्र , १८७० ९ आसमीमासा ___, १८८६ १० सामायिक पाठ ११ पत्रपरीक्षा १२ मतसमुच्चय १३ चन्द्रप्रम द्वितीय सर्ग मात्र भूघरमिश्र-यह कवि आगरेके निकट शाहगञ्जमे रहते थे। नातिके ब्राह्मण थे। इनके गुरुका नाम पण्डित रंगनाथ था । पुरुपार्थसिद्ध्युपायके अध्ययनसे आपको जैनधर्मकी रुचि उत्पन्न हुई थी। रंगनाथसे अनेक अन्योका अध्ययन किया था। पुरुपार्थसिद्ध्युपायपर इनकी एक विशद टीका है । इसमें अनेक जैन अन्योंके प्रमाण उद्धृत किये गये है । यह टीका संवत् १८७१ की भाद्रकृष्णा दशमीको समाप्त हुई थी। चर्चासमाधान नामक एक अन्य ग्रन्थ भी इनके द्वारा लिखा हुआ मिलता है । इनकी कविताका नमूना निम्न है नमों आदि करता पुरुष, आदिनाथ अरहंत । द्विविध धर्मदातार घुर, महिमा अतुल अनन्त । स्वर्ग-भूमि-पातालपति, जपत निरन्तर नाम । जा प्रभुके जस हंसको, जग पिंजर विश्राम ॥ दीपचन्द काशलीवाल यह सागानेरके निवासी थे, पर पीछे आमेर आकर रहने लगे थे। इनका समय अनुमानतः १८वी शतीका
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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