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रहस्यवाद
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क्षमा और करुणा ये चारों सखिया चारो ओर खड़ी हैं; सकाम और अकाम निर्जरा रूपी दासियों सेवा कर रही हैं।
यहाँ पर सातो नयरूपी सौभाग्यवती सुन्दर रमणियोकी मधुर नूपुर ध्वनि झकृत हो रही है। गुरुवचनका सुन्दर राग आलापा जा रहा है तथा सिद्धान्तरूपी धुरपद और अर्थरूपी तालका सचार हो रहा है । सत्यश्रद्धानरूपी बादलोकी घटाएँ गर्जन-तर्जन करती हुई वरस रही हैं । आत्मा. नुमव रूपी बिजली बोरसे चमकती है और शीलरूपी शीतल वायु वह रही है। तपस्याके जोरसे काँका बाल विच्छिन्न ले रहा है और आत्मशक्ति प्रादुर्भूत होती जा रही है । इस प्रकार हर्प सहित शुद्धभावके हिडोले पर चेतन झूल रहा है। कवि कहता है
सहन हिंडना हरख हिडोलना, झूलत चेतन राघ । जह धर्म कर्म संजोग उपजत, रस स्वभाव विभाव ॥ जह सुमन रूप अनूप मन्दिर, सुरुचि भूमि सुरंग। वह ज्ञान दर्शन खंभ अविचल, चरन आइ अभंग ॥ मरुवा सुगुन पर जाय विचरन, भौर विमल विवेक । न्यवहार निश्चय नभ सुदंडी, सुमति पटली एक। उद्यम उदय मिलि देहि शोटा, शुभ अशुभ कल्लोल। पट्कील नहाँ पटू द्रव्य निर्णय, अभय अंग अडोल ॥ संवेग संघर निकट सेवक, विरत चीरे देत । आनंद कंद सुछंद साहिव सुख समाधि समेत ॥ धारना समता क्षमा क्रुणा, धार सखि चहुँ ओर। निर्जरा दोउ चतुर दासी, करहि खिदमत नोर ॥ जह विनय मिलि सातों सुहागिन, करत धुनि अनकार ।
गुरु वचन राग सिद्धान्त धुरपद, ताल भरय विचार ॥ रहस्यवादकी प्रथम अवस्थासे लेकर तृतीय अवस्या तक पहुंचनेमे