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हिन्दी-जन-साहित्य परिगीलन प्रचण्ड दावानलकी लिखा यथा, प्रलम्ब है धूम नगाधिरान-सा। अवश्य कोई बन-धीच दुःसहा, महान् आपचि उपस्थिता हुई।
-पृ. २६१ इसी प्रकार भगवान महावीरकी कंवलनानोत्पत्तिके पश्चात् उनकी आत्माका कुबेर-द्वारा न्यम ले जाना और वहाँम आदि शक्तिको लेकर पुनः आन्माना लोट आना, और शरीरमें प्रवेश करना विद्युत विलक्षण असना है। इसका जैन कथावन्नुन विकृत मेल नहीं बैठना है। क्योंकि जनवम तो प्रत्येक आत्माको चनः अनन्त ज्ञान, अनन्त मुन्न, अनन्न वार्यका माण्डार मानना है । जबतक आत्मापर कमाका पदा पड़ा रहता हैनबतक उनकी ये शनियाँ आच्छन्न रहती हैं। कर्म-कान्त्रिमण हटनं ही आत्मा शुद्ध निकल आनी है। उनकी शारी शानियाँ प्रकट हो जाती है और वह स्वयं भगवान बन जाती है। कोई आत्मा तीतक निखारी है जबतक वह कपाय और बामना कारण स्त्रमावन पराइनुख है। ऋचनशान हनिपर आल्या पूर्ण ज्ञानी हो जाती है। उन कहसि भी शनि लेनकी आवश्यक्ता नहीं पड़ती।
विवाहक प्रमंगको लंकर कविन बनान्बर और दिगम्बर मान्यताओंका सुन्दर समन्वय किया है । नाम्बर मान्यता अनुसार भगवान महावारन विवाह किया है और दिगम्बर मान्यता उन्हें अविवाहित रहना स्वीकार करती है। कविनं बड़ी चनुराईके साथ त्वममें भगवान्का विवाह कराकर उभय मान्यताओंमें सामान्य क्रिया है।
मावान् महावीरने दीक्षा ग्रहण कर दिगम्बर रूपमें विचरण क्रिया यह दिगम्बर मान्यता है औरट्वेतान्बर मान्यताम निनदीक्षा लेनके उपगन्न भगवान्का देव दृष्य धारण करना माना जाता है। कविने इन मान्यताओका भी सुन्दर सामंवन्य बनेका प्रयत्न किया है। कवि कहता है