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________________ हिन्दी - जैन- साहित्य में अलंकार-योजना १६५ कनक नग । धवल परम पद-रमन जगत-जन अमल कमल खग", . मे अनुप्रासकी सुन्दर छटा है। भैया भगवतीढासके निम्न पद्यमे कितना सुन्दर अनुप्रास है । इसने अनुभूतिको तीव्रता प्रदान की है। यह देखते ही बनता है । कटाक कर्म तोरिके छटॉक गाँठ छोरके, पटाक पाप मोरके तटाक है मृपा गई । aare चिन्ह जानिके, भटाक होय आनके, नटाकि नृत्य मानके खटाकि वै खरी ठई ॥ arके घोर फारिके तटाक बन्ध टारके, अट. के रामधारके राक रामकी जई । गटाक शुद्ध पानके हटाकि अच आनको, घटाकि आप दानको सटाक ज्यो बधू लई ॥ कवि-बनारसीदासने यमकालंकार की — "केवल पद महिमा कहो, कहो सिद्ध गुणगान" मे कितनी सुष्ठु योजना की है। भैया भगवतीदासकी कवितामे तो यमकालंकारकी भरमार है । निम्न पद्यमें यमककी कितनी सुन्दर योजना की गई है। एक मतवाले कहें अन्य मतवारे सव, एक मतवारे पर वारे मत सारे हैं। एक पंच तत्व वारे एक-एक तत्व वारे, एक भ्रम मतबारे एक एक न्यारे हैं । जैसे मतवारे व तैसे मतवारे बकै, तासों मतवारे तर्के बिना मतवारे हैं । शान्तिरस बारे को मतको निवारे रहें, तेई प्रान प्यारे रहें और सब वारे हैं ॥ इस पद्यमें प्रथम मतबारेका अर्थ मतवाले और द्वितीय मतवारेका •
SR No.010039
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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