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छन्द-विधान
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घनाक्षरी छन्दका प्रयोग भी कवि वनारसीदासने लयविधानके नियमोका प्रदर्शन करनेके लिए किया है। लयात्मक तरगे इस कठोर छन्दमें भी किस प्रकार स्वरकी मव्यरेखाकै अपर-नीचे जाकर लचक उत्पन्न करती है, यह दर्शनीय है।
घनाक्षरी ताही को सुबुद्धि बरै रमा ताकी चाह करे, चन्दन सरूप हो सुयश ताहि घरचै । सहन सुहाग पावै, सुरग समीप भावे, बार वार मुकति रमनि ताहि भरचै । ताहिके शरीर को मलिंगन अरोगताई, मंगल करै .मिवाई प्रीत करै परचै । जोई नर हो सुचेत चित्त समता समेत, धरम के हेतको सुखेत धन खरचै ॥
-बनारसी विलास पृ० ५६ कवि वनारसीदासने वस्तुछन्द नामके एक नये छन्दका भी प्रयोग किया है। यद्यपि इस छन्दमें कोई विशेष लोच-लचक नहीं है, तो भी संगीतात्मकता अवश्य है। ___ कवित्त छन्दमे लय और तालका सुन्दर समावेश भैया भगवतीदासने किया है। मात्रामओ और वर्गों की संख्याकी गणनाके सिवा विराम और गति विधिपर भी ध्यान रखा है, जिससे पढते ही पाठककी हृदय-बीनके तार झनझना उठते है । ध्वनि और अर्थमें साम्यका विधान भी इस छन्द द्वारा प्रस्तुत किया गया है । मधुर ध्वनियोकी योजना भी प्रायः कवित्तोमे की गयी है।
कवित्त कोउ तो करै किलोल भामिनीसों रीझि-रीझि,
पाहीसों सनेह करै काम राग भर में।