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आत्मकथा, जीवनचरित्र और संस्मरण १३९ थे। एक शामको जब वाबाजी सामायिक ( आत्मचिन्तन ) कर रहे थे, उस समय आप चार-पॉच साथियोके साथ गगापार रामनगर रामलीला देखनेको चले गये। जब नाव बीच गगामे पहुंची तो हवाके तीव्र झोकोसे डगमगाने लगी और 'अब डूबी, तब इबी' की उसकी स्थिति आ गयी । विद्यालयकी छतपर खडे अधिष्ठाताजी सारा दृश्य देख रहे थे। विद्यार्थियोंकी नावको गगामे डूबते देख उनके प्राण सूखने लगे और उनकी मङ्गलकामनाके लिए भगवान्से प्रार्थना करने लगे। पुण्योदयसे किसी प्रकार नौका बच गयी और सभी विद्यार्थी रामलीला देखकर रातको १० बजे लौटे | सबके लीडर आत्मकथा-लेखक ही थे। आते ही अधिष्ठाताजीने आपको बुलाया और बिना आज्ञाके रामलीला देखनेके अपराधमे आपको विद्यालयसे पृथक् कर दिया। साथ ही विद्यालय-मन्त्रीको, जो आरामे रहते थे, पत्र लिख दिया कि गणेशप्रसाद विद्यार्थीको उद्दण्डताके अपराधमे पृथक् किया जाता है । जब पत्र लेकर चपरासी छोडनेको चला तो आपने चपरासीको दो रुपये देकर वह पत्र ले लिया और विद्यालयसे जानेके पहले आपने एक बार समामे भाषण देनेकी अनुमति मांगी। सभामे निर्भीकतापूर्वक आपने समस्त परिस्थितियोका चित्रण करते हुए मार्मिक भापण दिया । आपके भाषणको सुनकर अधिष्ठाताजी भी पिघल गये और आपको क्षमाकर दिया ।
इस प्रकार आत्मकथा-लेखकने अपने जीवनकी छोटी-बडी सभी चातोको स्पष्ट रूपसे लिखा है। घटनाएँ इतने कलात्मक ढगसे सबोयी गयी हैं, जिससे पाठक तल्लीन हुए विना नहीं रह सकता । भाषा इतनी सरल और सुन्दर है कि थोड़ा पढा लिखा मनुष्य भी रसमग्न हो सकता है। छोटे-छोटे वाक्योमें अपूर्व माधुर्य भरा है। __ आजके समाजका चित्रण भी आपने अपूर्व ढगसे किया है। आज किस प्रकार धनिक मनुष्य अपने पैसेसे सैकड़ों पापोंको छुपा लेते हैं, पर एक निर्धनका एक सुईकी नोकके बराबर भी पाप नहीं छिपा छिपता ।