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हिन्दी - जैन- साहित्य- परिशीलन
कार है । आपकी रचनाओंके द्वारा केवल जैन साहित्य ही वृद्धिगत न हुआ, बल्कि समग्र हिन्दी साहित्यका भाण्डार बढ़ा है।
इस सम्बन्धमें एक नाम विशेषरूपसे उल्लेखनीय है, श्रीजैनेन्द्र कुमार जैनका । श्रीजैनेन्द्रनी उच्चकोटिके उपन्यास, कहानीकार तो है ही, निबन्धकारके रूपमें भी आपका स्थान बहुत ऊँचा है। अपने निबन्धो में आप बहुत सुलझे हुए, चिन्तक के रूपमे उपस्थित होते हैं । इस समस्त चितन की पार्श्वभूमि आपको जैन दर्शनसे प्राप्त हुई है। यही कारण है कि अनेक प्रकारकी उलझी हुई, समस्याओंका समाधान सीधे रूपमें अनेकान्तात्मक सामञ्जस्य द्वारा सफलतापूर्वक करते हैं । इनकी शैली के सम्बन्धमें यही कहना पर्याप्त होगा कि इन्होंने हिन्दीको एक ऐसी नयी शैली दी है, जिसे जैनेन्द्रकी शैली ही कहा जाता है।
आत्मकथा, जीवनचरित्र और संस्मरण
आत्मकथा, जीवनचरित्र और संस्मरण भी साहित्यकी निधि हैं। मानव स्वभावतः उत्सुक, गुप्त और रहस्यपूर्ण वार्तोका जिज्ञासु एवं अनुकरणशील होता है । यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरोके जीवनचरित्रो, आत्मकथाओं और सस्मरणोको अवगत करनेके लिए सर्वदा उत्सुक रहता है, वह अपने अपूर्ण जीवनको दूसरोंके जीवन- द्वारा पूर्ण बनानेकी सतत चेष्टा करता रहता है ।
जीवन चरित्रोंकी सत्यतामे आशंका पाठकको नहीं होती है, वह चरित्रनायकके प्रति स्वतः आकृष्ट रहता है, अतः जीवनम उदात्त भावनाओंको सरलतापूर्वक ग्रहण कर लेता है । मानवत्री जिज्ञासा जीवन चरित्रोंसे तृप्त होती है, जिससे उसकी सहानुभूति और सेवाका क्षेत्र विकसित होता है । कर्त्तव्यमार्गको प्राप्त करनेकी प्रेरणा मिलती है और उच्चादशको उपलब्ध करनेके लिए नाना प्रकारकी महत्त्वाकांक्षाएँ उत्पन्न होती हैं ।