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निवन्ध-साहित्य
१३५ और साहित्यिक निवन्ध प्रकाशित हुए है । आपके निबन्धोंमे पूज्यपाद सम्बन्धी निवन्ध महत्त्वपूर्ण है। शैली शोधपूर्ण है।
श्री पं० बलभद्र न्यायतीर्थ के सामाजिक और साहित्यिक निवन्ध जैन सदेशमे प्रकाशित होते रहते हैं। आपकी भाषामें प्रवाह रहता है, एव गैलीमे विस्तार।
श्री रुपमदास स्काके अनेक प्रौढ़ निबन्ध सामाजिक और साहित्यिक विषयोपर प्रकाशित हुए है। आपकी शैली प्रवाहपूर्ण है, और वर्णनमें सजीवता है।
श्री नत्थूलाल शास्त्री साहित्यरत्नके सामाजिक और साहित्यिक निबन्ध जैन साहित्यके लिए गौरवकी वस्तु है। आपका "जैन हिन्दी साहित्य" निवन्ध विशेष महत्त्वपूर्ण है । आपकी शैलीमे रोचकता है।
श्री कस्तूरचन्द काशलीवालके शोधात्मक निबन्ध भी महत्त्वपूर्ण है। आपकी शैली स्क्ष होनेपर भी प्रवाहपूर्ण है । विषयके स्पष्टीकरणकी क्षमता आपकी भाषामे पूर्ण रूपसे विद्यमान है।
श्री प्रो. देवेन्द्रकुमार, श्री विद्यार्थी नरेन्द्र, श्री इन्द्र एम० ए०, श्री पृथ्वीराज एम० ए० आदि मी सुलेखक हैं । दार्शनिक निबन्धकामे श्री रघुवीरशरण दिवाकर का स्थान महत्वपूर्ण है | आपने अनेक जीवन गुत्थियों को सुलझानेका प्रयत्ल किया है। श्री प्रो. विमलदास एम० ए० भी अच्छे निवन्धकार है। आपके विवेचनात्मक कई निवन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। .
सामाजिक, आचारात्मक और दार्गनिक निवन्धकारोंमे पं० परमेष्ठीदास न्यायतीर्थ, ५० वंशीधर घ्याकरणाचार्य, पं० फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री, श्री स्वतन्त्र, श्री कापडिया आदि हैं। श्री पण्डित अजितकुमार शास्त्री न्यायतीर्थ ने खण्डनमण्डनात्मक पद्धतिपर कई निवन्ध लिखे हैं। आपकी शैली तर्कपूर्ण और भाषा सयत है।
श्रीदरबारीलाल सस्यभक्त एक चिन्तनशील दार्शनिक और साहित्य