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________________ हिन्दीजैन साहित्य-परिशीलन पदोमें विराट कल्पना, अगाध दार्शनिकता और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ हैं। भावनाओमें विवेचनकी प्रवृत्ति इनके पदोंका एक मुख्य गुण है । निम्नपद दर्शनीय है आनन्दानु बहैं लोचनत, वाते आनत न्हाया । गद्द स्पष्ट वचनजुत निर्मल, मिष्टजान सुरगाया ॥ टेक ॥ भव वन में बहु भ्रमण कियो तहाँ, दुःखदावानल ताया। अब तुम भक्तिसुधारसवादी मैं अवगाह कराया ॥ मानन्दाश्रु.॥ इस प्रकार कवि भागचंदके पदोमे हृदयकी तीव्रानुभूति विद्यमान है। जिस पदमें जिस भावनाको व्यक्त करना चाहते हैं उस पदमें उसे वह गहराई, सूक्ष्मता और मार्मिकताके साथ व्यक्त कर सके हैं। __मनन और पद रचनेमें इनका जैन कवियोमें महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके पदोमे अनुभूतिकी तीव्रता, लयात्मक संवेदनशीलता और र समाहित भावनाका पूरा अस्तित्व विद्यमान है। पद: परिचय आत्मशोधनके प्रति जो जागरूकता इनमें है, वह और समीक्षा कम कवियोमे उपलब्ध होगी। इनकी विचारोकी कल्पना और आत्मानुभूतिकी प्रेरणा पाठकोके समक्ष ऐसा सुन्दर चित्र उपस्थित करती है जिससे पाठक अनुभूतिमें लीन हुए बिना नहीं रह सकता । तात्पर्य यह है कि इनकी अनुभूतिमे गहराई है, प्रबल वेग नहीं । अतः इनके पद पाठकोको डूबनेका अवसर देते है, बहनेका नही । संसाररूपी मरुभूमिकी वासनारूपी वालुकासे तत कवि शान्ति चाहता है। वह अनुभव करता है कि मृत्युका सबध, जीवनके साथ है, जीवनका शाश्वतिक सत्य मृत्यु है। यह मृत्यु हमारे सिरपर सदा वर्तमान है । अतः हर क्षण प्रत्येक व्यक्तिको सतर्क रहना चाहिये । कवि गुनगुनाता हुआ कहता हैकाल अचानक ही ले जायगा, गाफिल होकर रहना क्यारे । टेक ॥ छिनहूँ तोकू नाहिं बचावे, तोसुमटन का रखना क्या रे .काल.
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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