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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन
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तीसरे वर्गमें उन मिश्रित पदोको रक्खा जा सकता है जिनमें तन्मयता के साथ भाव-गाम्भीर्य भी विद्यमान है। समता-रसका वासन्ती समीर मनकी राशि-राशि अभिलापाओ और हृदयकी कोमल कमनीय ऐन्द्रियिक भावनाको विकसित पुष्पके परागकी तरह धूल्सिात् कर देता है तथा समता-पीयूपकी खुमारी आत्मविभोर बना देती है। कवि उपर्युक्त भावना का विश्लेषण करता हुआ कहता है
___ मेरे घट ज्ञान भाम भयौ भोर। चेतन चकवा चेतन चकवी, भागी विरहको सोर ॥ १॥ फैली चहुँदिशि चतुरभाव रुचि, मिट्यो भरम-तम जोर । आपकी चोरी आपही जानत और कहत न चोर ॥२॥ अमल-कमल विकसित भये भूतलमन्द विषय शगिकोर । 'आनन्दघन' इक वल्लभ लागत, और न लाख किरोर ॥ ३॥
'जसविलास सग्रह' नामसे इनके पदोका सग्रह प्रकाशित हुआ है। इनके पदोमे भावनाएँ तीव्र आवेगमयी और संगीतात्मक प्रवाहमें प्रस्फुटित
र हुई है । भापामें लाक्षणिक वैचित्र्यके स्थानपर सरसता
और सरलता है। पदोमें प्रधान स्पसे-आध्यात्मिक
भावोकी अभिव्यजना है । अपने आराव्यके प्रति
' आत्मनिवेदनकी भावना भी तीव्र स्पमे पायी जाती है। आत्माकी अभिरुचि उत्पन्न होते ही अज्ञान, असंस्कार, मिथ्यात्व आदि भस्म हो जाते है, जिससे स्वानुभूति होनेमें विलम्ब नहीं होता। कविके अनेक पदोंमे वौद्धिक शान्ति स्थानमे आध्यात्मिक शान्ति शुद्धानुभूतिका निरूपण है । आध्यात्मिक विश्वासोकी भूमि कितनी दृढ है तथा खानुभूति उत्पन्न हो जानेपर मानव आत्मानन्दम कितना विभोर हो सकता है यह निम्न पदमे दर्शनीय है । कवि कहता है
हम मगन भये प्रभु ध्यान में । विसरगई दुविधातन-मनकी, मचिरा सुत गुनगान में हम ॥१॥