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हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन इस परिशीलनके तैयार करनेमें वयोवृद्ध एवं ज्ञानवृद्ध श्री ५० नाथूरामनी प्रेमीसे मुझे पर्याप्त सहयोग मिला है। आपने एकवार इसे आद्योपान्त देखा तथा अपने बहुमूल्य सुझाव उपस्थित किये, इसके लिए मैं आपका अत्यन्त आभारी हूँ। नींवकी इंटकी तरह समस्त भार वहन करनेवाले श्री पं० अयोध्याप्रसादजी गोयलीयका आभार प्रकट करनेके लिए मेरे पास शब्द नहीं। आप एकवार आरा पधारे थे, मैने उस ममय इस कृतिके कुछ अंश पढ़कर आपको सुनाये | आपने मेरी पीठ टोकी, फलतः आपके द्वारा प्राप्त उत्साहसे यह रचना कुछ ही समयमें तैयार हो गयी। इस कृतिको परिष्कृत रूप देनेका श्रेय लोकोदय अन्यमालाके सुयोग्य सम्पादक श्री वावू लक्ष्मीचन्द्रजी जैन एम०ए० को है, आपने इसे संक्षिप्त रूप देकर एक कुद्यल मालीका कार्य किया है। अन्यथा इस कृतिके पॉच-पॉच सौ पृष्ठके दो माग होते । प्रेस कापी तैयार करने में श्रीजैन वालाविश्राम आराकी साहित्य विभागकी छात्राओं, वहाँक शिक्षक श्री पं० माधवराम शास्त्री और अपने भतीजे आयुप्मान् श्रीराम तिवारीसे भी पर्याप्त सहयोग मिला है । परामर्श प्राप्त करनेम पूज्य भाई प्रो० खुशालचन्द्रजी गोरावाला एम० ए०, साहित्याचार्य, मित्रवर बनारसीप्रसाद भोजपुरी', प्रो. रामेश्वरनाथ तिवारीसे भी समय-समयपर सहयोग प्राप्त होता रहा है।
भारतीय ज्ञानपीठ काशीके अधिकारी एवं प्रूफसंशोधनमें सहायक श्री चतुर्वेदीनीका भी हृदयसे आभारी हूँ। समस्त अन्योंकी प्राप्ति जैनसिद्धान्तमवन आराके ग्रन्थागारसे हुए, अतः उस पावन-सस्थाके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूँ । अन्तम समस्त सहायक महानुभावोंके प्रति अपना आभार प्रकट करता है।
जैनसिद्धान्त भवन, आरा
२फरवरी ५६
-नेमिचन्द्र शास्त्री