SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरातन काव्य-साहित्य १०-सर्ग या अधिकारके अन्तमे छन्द बदल जाते हैं, कमी-कमी एक ही सर्गमें कई प्रकारके छन्द आते है।। ११-प्रभात, सन्ध्या, प्रदोष, सूर्य, चन्द्र, अन्धकार आदि प्राकृतिक दृश्यों, सयोग, वियोग, युद्ध, विवाह आदि जीवनकी परिस्थितियाँ एवं स्वर्ग, नरक, ग्राम, नगर आदि अनेक प्रकारकी वस्तुओका चित्रण रहता है। १२-महाकाव्यका नामकरण किसी प्रधान घटना, काव्यगत वृत्त, कविका नाम अथवा नायकके नामके आधारपर होता है। देशी भाषामें स्वयम्भूदेवके पउमचरिउ, रिक्षणेमिचरिउ, पुष्पदन्त कविका तिसद्विमहापुरिसगुणाकार, पद्मकीर्तिका पार्श्वपुराण और नयनन्दिका सुदर्शनचरित हैं। ब्रजभाषा और राजस्थानी भाषामे विनयसूरिका मलिनाथमहाकाव्य, भूघरदासका पार्श्वपुराण तथा अनूदित हरिवशपुराण आदि हैं । वास्तविक बात यह है कि राजस्थानमे अभी जैन काव्योका अन्वेषण करना शेष है। हमारा विश्वास है कि जयपुरके आस पासके जैनमन्दिरोंके शास्त्रागारोमे हिन्दीके अनेक महाकाव्य छुपे पड़े है। ___ यहॉ दो-चार उन मुख्य अन्योका ही विवेचन दे रहे है, जो हमारे अनुशीलनका विषय रहे है। परमचरित-पभचरित्र इस अन्थमे १२००० पद्य हैं। ९० सन्धियाँ (जैन रामायण) और ५ काण्ड हैं । विवरण निम्न है विद्याधरकाण्ड-२० सन्धि अयोध्याकाण्ड-२२ सन्धि सुन्दरकाण्ड-१४ सन्धि युद्धकाण्ड-२१ सन्धि उत्तरकाण्ड-१३ सन्धि इन सन्धियोमें ८३ सन्धियाँ स्वयभूदेवकी हैं और शेष सात सन्धियाँ इनके पुत्र त्रिभुवन द्वारा रचित हैं।
SR No.010038
Book TitleHindi Jain Sahitya Parishilan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1956
Total Pages253
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy