________________
५२
हिन्दी-जैन-साहित्य-परिशीलन खीचनेमे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। जीवनकी कमजोरियॉ, मानसिक विकार और विभिन्न परिस्थितियोके गहन स्तरोकी अभिव्यञ्जना भी प्रशंस्य है।
प्रवन्धकाव्यके दो भेद हैं-महाकाव्य और खण्डकाव्य । महाकाव्यम सम्पूर्ण जीवनका चित्रण रहता है, पर खण्डकाव्यम जीवनके किसी खास हिन्दी जैन अधका ही चित्राकन किया जाता है। काव्य मनी
महाकाव्य पियोंने महाकाव्यमें जीवनकी सर्वाङ्गपूर्ण कथाकै साथ निम्नाङ्कित बातोका होना भी आवश्यक माना है
१-कथावस्तु सर्गों या अधिकारोंमे विभक्त होती है। २-नायक तीर्थकर, चक्रवती या अन्य महापुरुप होता है। ३-शृङ्गार, वीर या शान्त रसकी प्रधानता रहती है। ४-सन्धियोमें अद्भुत रस होता है, प्रसगवश अन्य रस भी आ
सकते हैं। ५-नाटककी सभी सन्धियों पायी जाती है। ६-कथावस्तु ऐतिहासिक या जगत्-प्रसिद्ध होती है। ७-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इनमेंसे किसी एक पुरुषार्थको प्राप्त
करना उद्देश्य माना जाता है। ८-आरम्भमें मंगलाचरण, आशीर्वचन अथवा प्रतिपाद्य वस्तुका
संकेत रहता है। ९-सगीकी संख्या आठसे अधिक होती है ।
१-सर्गवन्धो महाकान्यं तन्त्रको नायका सुरः ।
सदशः क्षत्रियो वापि धीरोदातगुणान्वितः॥ एकवंशभषा भूपाः कुलजा बहवोऽपि धा। भंगारवीरशान्तानामेकोशी रस इप्यते ॥
-साहित्यदर्पण